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ब्रह्म सत्यम् सर्वाधार

"समता अपार शक्ति"



“बीती हुई यादें"

( कथानक 1-40)

-: ओमकपूर :-
प्रसारकः
समता सत्संग स्थान
21-ओल्ड सर्वे रोड, दिलाराम बाज़ार 
देहरादून - 248001, भारत
दूरभाष- 0135-2764837

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महामन्त्र


ओ३म्     ब्रह्म    सत्यम्     निरंकार
अजन्मा  अद्वैत  पुरखा सर्व व्यापक
कल्याण  मूरत  परमेश्वराय   नमस्तं ।।

शब्दार्थ

ॐ ब्रह्म परम निर्गुण सत्ता है केवल मात्र 
सत्य है; वह सत्ता आकार रहित है और उसका जन्म नहीं होता; वह केवल मात्र सत्ता सर्व-व्यापक है एवं कल्याण-स्वरूप है; ऐसे सर्वातीत सर्व-व्यापक परमेश्वर को नमस्कार है।

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निवेदन :-

सन्मार्ग के प्रबुद्ध पथिक के चरणों में यह “संस्मरण" सस्नेह सादर अर्पित है।

श्री सदगुरूदेव सर्वज्ञ प्रभु, सद्ज्ञान वर्धन में हम सबका मार्ग-दर्शन करते हुए सहाई होवें । 

पथिक अवलोकन करे, सोचे और कुछ प्रेरणा ले सके तो यह सत्कार्य सफलीभूत होगा।

हमारे ऊपर उसकी कृपालुता होगी।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । 
सर्वे भद्राणि  पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखमाप्नुयात् ।। 1 ।।
सब सुखी हों, सब आरोग्यवान हों, सबका 
   कल्याण हो, कोई दुःखी न हो।। 1 ।।
दुर्जनः सज्जनो भूयात्, सज्जनः शान्तिमाप्नुयात् ।
 बन्धेभ्यो मुक्तश्चान्यान विमोचयेत् ।। 2 ।।
दुर्जन सज्जन हो जावें, सज्जन शान्ति प्राप्त करें,
शान्त बन्धन से मुक्त हों और मुक्त दूसरों को मुक्त करें ।। 2 ।।
ॐ तत् सत्

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सत्पुरुष श्री मंगत राम जी महाराज

जन्म           : नवम्बर 24, सन् 1903 ईस्वी
     महासमाधि       :  फरवरी 4, सन् 1954 ईस्वी (अमृतसर) पंजाब
जन्म स्थान        :    गंगोठियां ब्राह्मणां, तहसील कहुटा 
                           ज़िला रावलपिण्डी (पाकिस्तान)

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श्री सद्गुरूदेव महात्मा मंगतराम जी महाराज

-संक्षिप्त जीवन परिचय-

पूज्यपाद श्री सतगुरू महात्मा मंगतरात जी वर्तमान युग के जन्मसिद्ध सत्पुरुष हुए है। आपका जन्म मंगलवार दिनांक 9 मग्धर 1960 तदनुसार 24 नवम्बर 1903 को शुभ स्थान गंगोठियाँ ब्राह्मणां, जिला रावलपिण्डी (पाकिस्तान) के एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुआ। आप बाल ब्रह्मचारी, पूर्ण योगी, परम त्यागी एवं ब्रह्मनिष्ठ आत्मदर्शी महापुरुष थे।

 आप में 'स्थितप्रज्ञ' के समस्त लक्षण पूर्णरूपेण विद्यमान थे। 13 वर्ष की अल्पायु में आत्म साक्षात्कार कर लेने के पश्चात आप सांसारिक प्राणियों का उद्धार करते रहे। देश और काल के अनुसार जहाँ कहीं भी आपने धर्म की मर्यादा को भंग होते देखा तथा सामाजिक नियमों के पालन में त्रुटि पाई, वहाँ पर ही धर्म की मर्यादा की स्थापना की और सदाचारी जीवन बिताने का उपदेश देकर सामाजिक ढाँचे को विश्रृंखल होने से बचाने का प्रयत्न करते रहे।

आप अपनी मधुर वाणी और निर्मल विचारों के द्वारा हर एक को प्रभावित कर लेते थे और सरल एवं सुबोध भाषा में आध्यात्मिकता के गम्भीर विषयों को सहज ही सुलझा दिया करते थे। आपने समता के उद्देश्य का जगह-जगह पर प्रचार किया और यह सिद्ध कर दिया कि समता सिद्धान्त को अपनाकर ही मानव संकुचित विचारधारा, साम्प्रदायिकता तथा जाति-पाति के बंधनों से ऊपर उठ सकता है।

आपने सांसारिक प्रणियों को सत्शान्ति की प्राप्ति के निमित्त समता के पाँच मुख्य साधनों- (1) सादगी (2) सत्य (3) सेवा (4) सत्संग और (5) सत् सिमरण को अपने निजी जीवन में ढालने का उपदेश दिया।। सत् पर आधारित होने के नाते आपके सभी उपदेश विश्व कल्याण की

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भावना को अपने में संजोये हुए है। आपने भारत के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों का दौरा करके जहाँ रूढिवादिता एवं अन्धविश्वास का खण्डन किया वहाँ सत् के जिज्ञासुओं को समता का पावन संदेश देकर उन्हें परमार्थ पथ पर आरूढ़ किया। आपकी वाणी का संग्रह ग्रन्थ "श्री समता प्रकाश" और वचनों का संग्रह ग्रन्थ "श्री समता विलास” प्रकाशित हो चुके है।
आप 4 फरवरी, 1954 को गुरू नगरी अमृतसर में अपने नश्वर शरीर का त्याग करके परमसत्ता में विलीन हो गये।

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"प्राक्कथन"

लगभग 6 दशक पूर्व एक सत्य के जिज्ञासु नवयुवक जिनका पालनपोषण सुसंस्कृत एवं धार्मिक परिवार में हुआ। जहाँ साधु सन्तों, विद्वानों और महात्माओं का सानिध्य प्रचुरता से उपलब्ध रहता था। परिवार जनों के भक्त प्रकृति के प्रभाव के फलस्वरूप संस्कार रूप में प्रतिदिन सत्संग, भगवत्कथा सत्चर्चा विद्वानों एवं सन्तजनों से प्रवचन सुनने को मिलते थे। परन्तु जिज्ञासु युवक को उन की बातों ने प्रभावित नहीं किया। साधु समुदाय की सुनी-सुनाई और पढ़ी-पढ़ाई बातों का कथनी ज्ञान उन्हें रास नही आया। उनके विचार मौलिक प्रतीत नहीं हुए । उनकी कहनी और रहनी में जमीन आसमान का अन्तर पाया। वह तो सच्चा सौदा खरीदते समय, खरे खोटे का ध्यान करना चाहते थे । उन्होंने ऐसा अनुभव कियाः-
कहन कथन में चतुर बहु देखे, अन्तर सार नहीं जानी।               
'मंगत' कथनी  मद    डूबे, बड़े    चतुर   बुद्ध    ज्ञानी ।।
उन्हें ऐसे सत्पुरूष की खोज थी, जिन्होंने तप, त्याग तथा यत्न से जीवन की मौलिक समस्याओं पर गहरी खोज की हो। जो अपने जीवन की अनुभूतियों के आधार पर आत्म तत्त्व का बोध कर चुका हो, जो आत्म लीन हो, “जहाँ चाह वहाँ राह" और "जो खोजता है, उसे वह मिल ही जाता है" अन्ततः एक मित्र की प्रेरणा से गुरू देव महात्मा मंगत राम जी के निकट पहुँच गये। परन्तु फिर भी सन्तुष्टि नहीं हुई “बिना लाग-लपेट कह दिया कि इन की बोली हमारी समझ में नहीं आती। इनकी बातें हमारे कुछ पल्ले नहीं पड़ती” सम्भवतः गुरूदेव भी शिष्य की तड़प को परखना चाहते थे।

1951 में एक मित्र के अनुरोध पर पुनः दर्शन प्राप्त हुए। तब अन्तर्यामी गुरूदेव ने स्मरण कराया "भाई तुम्हें तो हमारी बात ही समझ में नहीं आती" ।

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जिज्ञासु युवक ने बिना हिचकिचाहट फिर कह दिया "हाँ 1948 ऐसा ही हुआ था"।
 
गुरूदेव ने प्रेम से कहा- 

"प्रेमी सत्संग में आया करो, सब समझ में आ जाएगा"। मानो प्रेम का बाण दिल को छू गया। बस व्यक्तिगत सम्बंधों से प्रारम्भ हुआ सच्चे गुरू और सत् के जिज्ञासु शिष्य का अटूट सम्बंध, चलती रही खट्टी-मीठी बातें, जो लेखक जिज्ञासु आदरणीय श्री ओम कपूर जी देहरादून ने अपनी लेखनी से "बीती हुई यादों के अन्तर्गत लेखनी बद्ध किया है।

वही नवयुवक जिज्ञासु अब जीवन के अन्तिम पड़ाव पर सद्गुरू को अपने अंग-संग अनुभव कर पूर्ण निष्ठा, प्रेम और उमंग से श्री गुरू देव के पूर्ण समर्पित संगत कार्यों में जुटे रहते है। मानो श्री सत्गुरू देव के मिशन को, उनकी शिक्षाओं को अपने अन्तिम सांस तक आगे बढ़ाना ही उनके जीवन का लक्ष्य रह गया है।

रामप्रसाद

भूतपूर्व सम्पादक समता सन्देश पत्रिका