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समता अपार शक्ति

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समता
अध्यात्मिक पत्र
(द्वितीय भाग)
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(परम योगीराज श्री सद्गुरु देव महात्मा मंगतराम जी
द्वारा समय-समय पर प्रेमियों को लिखे गये पत्रों का संग्रह)
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प्रकाशक
संगत समतावाद (रजि०)
समता योगआश्रम, छछरौली रोड 
जगाधरी जिला अम्बाला (हरयाणा)

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समभाव ही कल्याण है । समभाव ही जीव का वास्तव सरूप और परम धाम है । समभाव हो धर्म है । समभाव की प्राप्ति में जतन करना ही गुरुमुख मार्ग है । इस वास्ते अपने आपको मज़हबी खुदगर्जी से आजाद करके सत असूलों में पाबन्द होने का सत्साधन धारण करे और हर घड़ी हर लमह अपने आप पर काबू पाने की कोशिश करें। इसमें ही असली शान्ति है । -श्री मंगतराम जी

प्रथम संस्करण 1976-1000

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संगत समतावाद (रजि०) समता योग आश्रम, छछरौली रोड, 
जगाधरी (हरयाणा) की ओर से राज प्रिन्टर्स राजामण्डी
 आगरा -२ से मुद्रित ।

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दो शब्द

मनुष्य का जीवन समस्याओं से भरपूर है । कई बार संकट और दुख मनुष्य को इस प्रकार घेर लेते हैं कि कोई रास्ता दिखाई नहीं देता। सांसारिक जीवन में बल्कि अध्यात्मिक मार्ग में भी कई ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं कि अधिक से अधिक बुद्धिमान की सूझ बूझ भी अपनी समस्याओं से मुक्त होने का यत्न नहीं कर पाती ।

समतावाद के भिन्न-भिन्न प्रेमी भी समय-समय पर अपनी समस्याओं और उलझनों का हल तलाश करने के लिये अपने पूज्य सत्गुरु देव महाराज मंगतराम जी से पत्र व्यवहार करके उनकी रहनुमाई प्राप्त करते रहे ।

सत्गुरु देव जी द्वारा दिये गये उत्तर और उनके पत्तों में दिये गये उपदेश बड़े अनमोल हैं और न केवल जिज्ञासुओं के लिये मार्ग प्रदर्शक हैं परन्तु सर्व जन हितकारी हैं ।

इन सद् उपदेशों की एक कड़ी इससे पूर्व "समता अध्यात्मिक पत्र" के रूप में प्रकाशित की जा चुकी है। अब इस पुस्तिका द्वारा ऐसे ही पत्नों द्वारा दिये गये उपदेशों की दूसरी कड़ी प्रस्तुत है ।

-संगत समतावाद

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योगिराज महात्मा

मंगत राम जी

का संक्षिप्त जीवन-परिचय

पूज्यपाद श्री सत्गुरुदेव महात्मा मंगतराम जी वर्तमान युग के जन्म- सिद्ध सत्पुरुष हुए हैं । आपका जन्म मंगलवार दिनाङ्क ६ मग्घर सम्वत् १९६० तदनुसार २४ नवम्बर, १६०३ को शुभ स्थान गगोठियाँ ब्राह्मण, जिला रावलपिण्डी (पाकिस्तान) के एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुआ । आप बाल ब्रह्मचारी, पूर्ण योगी, परम त्यागी एवं ब्रह्मनिष्ठ आत्मदर्शी महापुरुष थे ।

आप बाल्यकाल से ही सिद्ध पुरुष थे और आपमें "स्थितप्रज्ञ" के समस्त लक्षण पूर्ण रूपेण घटते थे । १३ वर्ष की स्वल्पायु में आत्म साक्षा- स्कार कर लेने के पश्चात् आप सांसारिक प्राणियों का उद्धार करते रहे। देश और काल के अनुसार जहाँ कहीं भी आपने धर्म को मर्यादा को भंग होते देखा तथा सामाजिक नियमों के पालन में त्रुटि पाई, वहाँ पर ही धर्म की मर्यादा की संस्थापना की और सदाचारी जीवन बिताने का उपदेश देकर सामाजिक ढांचे को विद्युङ्खल होने से बचा लिया। 

आप अपनी मधुर बाणो और निर्मल विचारों द्वारा हरएक को प्रभा- वित कर लेते थे और सरल एवं सुबोध भाषा में आध्यात्मिकता के गम्भीर विषयों को सहज हो समझा दिया करते थे । आपने समता के उद्देश्य का जगह-जगह पर प्रचार किया और यह सिद्ध कर दिया कि समता सिद्धान्त को अपनाकर मानव संकुचित विचारधारा, साम्प्रदायि- कता तथा जाति-पांति के बन्धनों से ऊपर उठ सकता है ।

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समता अध्यात्मिक पत्र

विषय सूची

विषय पृष्ठ

1. कर्म फ्लासफी प्रदर्शक पत्र......................................................3-10  
2. पत्र द्वारा संशय निवारण........................................................13-25         
3. समता सत नियम प्रदर्शक पत्र................................................26-67
4. श्री मुख वाक् अमृत.............................................................71-136
5. गुरु गमता...............................................................................137
6. सत उपदेश.............................................................................140 
7. आरती....................................................................................142 
8. समता मंगल............................................................................143  
9. समतावाद...............................................................................144

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कर्म फ्लासफी प्रदर्शक पत्र

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महा मन्त्र
ओ३म् ब्रह्म सत्यम् निरंकार अजनमा, अदवैत पुरखा
सर्व व्यापक कल्यान मूरत परमेश्वराये नमस्तं ॥