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प्रेरक-प्रसंग

(मानव- वाटिका के सुरभित पुष्प)

(अखण्ड संस्करण)
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शरद् चन्द्र पेंढारकर,
             एम. ए.
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रामकृष्ण मिशन विवेकानन्द आश्रम
रायपुर – 492001 (म. प्र.)

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प्रकाशक:
स्वामी सत्यरूपानन्द, 
सचिव,
रामकृष्ण मिशन विवेकानन्द आश्रम 
रायपुर492001(छ.ग.)
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सर्वाधिकार प्रकाशक द्वारा स्वरक्षित
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प्रथम संस्करण (1987) 2,000 प्रतियाँ
द्वितीय संस्करण (1981) 2,000 प्रतियाँ
तृतीय संस्करण (1995) 5,000 प्रतियाँ
चतुर्थ संस्करण (1998) 3,000 प्रतियाँ
पंचम संस्करण (1999) 5,000 प्रतियाँ
पृष्ठ संस्करण (2000) 10,000 प्रतियाँ
सप्तम संस्करण (2002) 10,000 प्रतियाँ 
अष्टम संस्करण (2006) 10,000 प्रतियाँ
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वितरक
(1) रामकृष्ण मठ, धन्तोली, नागपुर -440012
(2) अद्वैत आश्रम, 5 डिही एण्टाली रोड, कलकत्ता-700014
मुद्रक: संयोग आफसेट प्रा. लि.,
          बरजंगनगर, रायपुर 492001 
          फोन 0001-2546603

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प्रथम संस्करण का प्रकाशकीय

पाठकों के हाथ में 'मानव वाटिका के सुरभित पुष्प’ (गुच्छ-1) रखते हुए हमें विशेष प्रसन्नता हो रही है। यह लेखमाला इस आश्रम द्वारा निकाली जानेवाली हिन्दी वैमासिक 'विवेकज्योति' में बरसों से धारावाहिक रूप से प्रकाशित होती आ रही है। पाठकों ने इसे बहुत पसन्द किया है और बहुतों की यह माँग रही है कि इसे पुस्तक का रूप दिया जाय, जिससे उसका अधिक लाभप्रद उपयोग लोगों के लिए हो सके। प्रस्तुत प्रकाशन पाठकों की इसी माँग का फल है।
     इन प्रसंगों के लेखक श्री शरद चन्द्र पेंढारकर सम्प्रति डाक एवं तार संचालनालय, नागपुर में हिन्दी अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने विभिन्न धर्मावलम्बी सन्तों के जीवन के प्रेरक प्रसंगों को अपनी कुशल लेखनी से सजाया है, जिससे ये प्रसंग सचमुच ही मानव वाटिका के महकते फूल बन गये हैं। इन पुष्पों का सौरभ मानव-जीवन को सुवासित कर उसे उदात्त बना सकता है। हम इस अवसर पर लेखक के प्रति अपने हृदय का आभार व्यक्त करते हैं ।
      ये प्रसंग इस पुस्तकाकार में जो आ सके हैं इसका श्रेय श्री अरविन्द कुमार गुप्ता को जाता है, जिनके आर्थिक सहयोग से ही यह प्रकाशन सम्भव हो सका है। इस प्रकाशनमाला के आगे आनेवाले गुच्छ भी इन्हीं के सहयोग से प्रकाशित होने जा रहे हैं। हम उनके प्रति भी सत्संग की सुवास सर्वविध बिखेरने हेतु अन्तर की कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।
      मानव वाटिका के ये सुरभित पुष्प अपनी गमकती महक से मनुष्य की धर्मान्धता और मतान्धता की उबकाई लाने वाली बू से रक्षा कर उसे सही अर्थों में 'मनुष्य' बना दे, यही इसके प्रकाशन के पीछे हमारा उद्देश्य है। यदि थोड़ी-सी भी मात्रा में हमारा यह उद्देश्य सध सका, तो हम अपना श्रम सार्थक मानेंगे। रायपुर, 1 जनवरी 1987

तीसरे संस्करण का वक्तव्य

प्रेरक प्रसंगों का यह संकलन पहले 'मानव वाटिका के सुरभित पुष्प' नाम से तीन गुच्छों में प्रकाशित हुआ था, जिनमें क्रमशः 164, 132 तथा 121 प्रसंगों को लिया गया था। इस बीच और भी 16 प्रसंग 'विवेक ज्योति' में मुद्रित हो चुके हैं। उन सबको जोड़कर तथा पुनरुक्तियों को निकालकर हम यह तीसरा अखण्ड संस्करण प्रकाशित कर रहे हैं। इस बार का प्रकाशन भी श्री अरविन्द कुमार गुप्ता के आर्थिक सहयोग से ही सम्भव हो सका है। इसके मुद्रण में हमें युगबोध प्रकाशन के श्री आत्मबोध अग्रवाल की विशेष सहायता मिली है। इन सबके प्रति हम हृदय से आभारी हैं।
रायपुर 1 जनवरी 1996
-  प्रकाशक

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A PSALM OF LIFE

Lives of great men all remind us
We can make our lives sublime,
And departing leave behind us
footprints on the sands of time-

Footprints that perhaps another,
Sailing o'ver life's solemn main,
A forlorn and ship-wrecked brother'
Seeing, shall take heart again.

Let us, then be up and doing.
With a heart for any fate;
Still achieving, still pursuing.
Learn to labour and to wait.
-H.W. Longfellow

भावानुवाद

महत जनों का जीवन प्रतिफल देता है सन्देश सभी को
हम भी महिमामय कर सकते, अपने छोटे-से जीवन को ।
होंगे जब विदा जगत् से हम, पदचिह्न छोड़कर जायेंगे।
वे समय-बालुका पर अंकित, चिरदिन तक देखे जायेंगे ॥
थककर यदि हुआ निराश कहीं, शायद कोई चलता रही।
उन पदचिह्नों को देख वहाँ, पा जाये अभिनव आशा हो ॥
एतएव चलो हम जुट जायें, अपना भविष्य खुद गढ़ने को।
सीखेंगे अविरत श्रम करना, उन्नति की सीढ़ी चढ़ने को ॥