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समता अपार शक्ति समता अपार शक्ति

ब्रह्म सत्यम् सर्वाधार

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समता सत्संग कार्यक्रम पुस्तिका
अमरलोक से बानी आई । सकल जीव के ताप मिटाई ॥
धुर की बानी ने धुर पहुंचाया। बिछड़ा जीव प्रभ रूप मिलाया ।।
आज्ञा परमपुरूष से ये, अत गुह्य तत्त्व ज्ञान परगास्यो ।
'मंगत' श्रवन मनन जो कीजे, होवें सकल दोष चित्त नास्यो ।
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संगत समतावाद (रजि.)
समता योग आश्रम, जगाधरी

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ब्रह्म सत्यम् सर्वाधार

प्रथम संस्करण - 2021

सर्वाधिकार सुरक्षित - संगत समतावाद (रजि.) जगाधरी

मूल्य : समता प्रचार हेतू समय का बलिदान
प्राप्ति स्थान :
समता योग आश्रम
छछरौली रोड़, जगाधरी
www.samtavad.org

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ब्रह्म सत्यम् सर्वाधार

अवतरण : नवम्बर 24, सन् 1903
शुभ स्थान : गंगोठियां ब्राह्मणां, तहसील कहुटा
             जिला रावलपिण्डी (पाकिस्तान)
महासमाधि : फरवरी 4, सन् 1954 (अमृतसर)

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ब्रह्म सत्यम् सर्वाधार

साचा गुरू हर रूप है, सकल जियाँ आधार ।
'मंगत' पड्यो चरन तिस, कर डण्डवत बारमबार ।।

प्रस्तावना

प्रार्थना : श्री सत्गुरूदेव - सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, कल्याण की मूर्ति व ईश्वर स्वरूप के चरणों मे कोटि-कोटि नमन ! हृदय में विराजमान श्री सत्गुरूदेव सत्ज्ञान वर्धन में हम सब का मार्गदर्शन करते हुए सहाई होंवे ऐसी प्रार्थना है।
आभार : गुरूदेव ने अपने आशीर्वाद, आंतरिक प्रेरणा, मार्गदर्शन व अपने पत्रों द्वारा प्रेरित कर इस तुच्छ बुद्धि जीव को यह कार्य करने का बल व बुद्धि प्रदान की है उनका कोटि-कोटि आभार ।
प्रेरणास्त्रोत : गुरूदेव के पत्रों से कुछ अंश जो हम सबको सत्संग के लिए जीवन बलिदान करने की प्रेरणा देते हैं संगत की सेवा में दर्ज किये जाते हैं ताकि हम सभी इनसे प्रेरणा लेकर समता की तालीम को फैलाने का प्रयास करें ।
1) इस वक्त ईष्या-द्वेष की आग प्रचण्ड हो रही है, इसे बुझाने के लिए समता की रोशनी प्रकट हुई है। तुम गुरमुख जरूर इस रोशनी की किरणें बनकर अपने जीवन और देश को जरूरी प्रकाश करें। हिन्दू कौम की बिखरी हुई हालत को तुमने टांका लगाना है, इस वास्ते इस महाकार्य का बोझ तुम्हारे सिर है।
2) प्रेमी जी ऐसी सत्संग की बुनियाद कायम करें जिससे तमाम नाम जीवित हो जावें, ईश्वर सत्बुद्धि देंवे। ये एक बड़ी जिम्मेवारी

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और सेवा का काम है तुम खुद प्रेम करोगे और सत्संग में समता के असूल सुनाओगे तो कई लोगो का भला हो जावेगा।
3) बशश (विशाल) चित्त हो करके सत्संग के प्रोग्राम को ऐसा दृढ करें जिससे समता का स्वरूप प्रकाशक हो करके बहुत सज्जनों को लाभ होवे । प्रेमी जी, जब स्वार्थ में तमाम अवस्था गुजर गई, आप खुद महसूस करते हैं, तो अब परमार्थ का एक विशेष नियम जो सत्संग है उसको निरमान और निष्काम भाव से अपनाएं । इससे अपने आप का भी उद्धार है और संगत का भी उत्साह बढ़ता है
4) हर वक्त सत्संग द्वारा समता का प्रचार करते रहा करें इससे जनता को आनन्द प्राप्त होगा। प्रेमी जी इन बातों को हर वक्त याद रखें समता के असूलों पर खुद चलने की कोशिश करें, दूसरों को आगाह करें । कभी-कभी बड़ा सत्संग भी किया करें और संगत को प्रचार करके सुख दिया करें।
5) पुस्तकों का अच्छी तरह विचार किया करें इस विचार से तमाम वहमात दूर हो जावेंगें । वाणी बड़ी दिलकश है इसकी मुनादी जरूर करें जिससे जनता को लाभ प्राप्त हो । इतना लिट्रेचर पब्लिक की उन्नति की खातिर है। इस वास्ते अधिकारी होकर इसको जागृत करें। हर वक्त प्रेमपूर्वक अपना जीवन बनाएं।
6) प्रेमी जी पुस्तकों का अच्छी तरह स्वाध्याय करें तो आपको पता लग सकेगा कि जमाने में किस निर्मल रोशनी की झलक को अनुभव कर रहे हैं। यह तालीम निर्मल और सरल तमाम वेद-शास्त्रों का निचोड़ प्रभु आज्ञा से आप लोगों के सामने आई है।

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इसको अच्छी तरह से विचार करें और अपनी आईन्दा नस्लों के वास्ते सही जिन्दगी का आदर्श कायम करें। प्रभु नित ही सहायक होवें ।
7) आशीर्वाद पहुँचे । पत्र मिला, ईश्वर सत् विश्वास देवें तमाम संगत को एक-एक करके आशीर्वाद कहनी। तुम्हारी जिन्दगी नमूना होने की बहुत जरूरत है । प्रेमी जी, दुनिया की खिदमत (सेवा) करने वाले तुम सही मायनो में बनोगे तब समता की रोशनी फैलेगी। सत्संग द्वारा अपने जीवन का सुधार करें। हर एक को आगाह करें।
8) समता की रोशनी को फैलाने की कोशिश करें जिससे समता का अंधकार नाश हो जावे प्रेमीजियो ! रामचन्द्र, कृष्णचन्द्र, नानक, बुद्ध, ईसा आदि सब महात्माओं का मिशन समता ही है। मगर हिन्दू इस तालीम से बहुत दूर चले गए हैं। तुमको चाहिए फिर नए सिरे से उसको प्रकाश करें और तमाम जनता का मिशन समता ही हो जावे। इस संसार में आकर कुछ वक्त धर्म की उन्नति की खातिर निकालना चाहिए। जिस जगह भी जाओ समता का प्रचार करो और लोगों के टूटे हुए दिलों को टांका लगाओ।
9) समता हिन्दू धर्म की जड़ है इसको पूरा-पूरा पानी देंवे । तब फिर सूखा हुआ द्रख्त (पेड़) समर (फल) लाएगा । ईश्वर सबको समता बुद्धि देंवे।
10) आशीर्वाद पहुँचे । पत्र मिला । ईश्वर सत्बुद्धि देंवे । प्रेमी जी, तुम सत्संग का प्रोग्राम मुकम्मल बनाए रखें। ईश्वर करेगा तो कामयाबी हो जावेगी। इस खतरनाक जमाने में ईश्वर ही देश को

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ख्वाबे गफलत से जगा सकता है तुम जिधर भी जाओ इन पुस्तकों का विचार किया करें। अहिस्ता-अहिस्ता सब ठीक हो जावेगा । देश बहुत मुद्दत से सोया पड़ा है, जल्दी जागना मुश्किल है। इतना जरूरी है कि प्रेमियों की जिन्दगी में कुरबानी का मादा आ जावे तो फिर ईश्वर सफलता बख्शेंगे ।
11) सत्संग में अच्छे-अच्छे वाक्यात का विचार किया करें । बिल्कूल बेफिक्र रहें । ईश्वर तुम्हारी कुर्बानी को फल लगायेंगे। कोशिश करते चलो। ईश्वर सत्बुद्धि देंवे। तमाम प्रेमियों को देश और धर्म की जागृति में कोशिश करनी चाहिए हर वक्त इनको अपने हृदय में देंखे। ईश्वर सत्श्रद्धा देंवे । समता की तालीम एक समुद्र है। कोई आलीम फाजिल (विद्वान) इनकारी नही कर सकता । तुमको खुद पहले इसको अपनाना चाहिए, फिर दूसरों की सेवा करनी चाहिए । ईश्वर विश्वास देवे हर वक्त कोशिश धारण करें।
12) तुम्हारा समता का लिट्रेचर इतना है कि कोई मुकाबला नही कर सकता हर एक बात का विचार पूर्ण हो चुका है। सिर्फ तुमको जागृत करना है। देखो फिर कितने लोगों के अन्दर प्रकट हो जावेगा । ईश्वर सबको अधिक प्रेम समता का देंवे और तमाम असूलों को दोहराया करें।
13) दुनियाँ में परहित और परोपकार ही जीवन है । सो तुम तमाम प्रेमी सच्चे दिल से जगत सेवक बनने की कोशिश करते रहें । गुरू का आशीर्वाद तभी प्रफुल्लित होता है कि उनका वचन तन मन करके पालन करें।

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ब्रह्म सत्यम् सर्वाधार

14 ) इस प्रोग्राम को ऐसा दृढ़ बनावें की आम ममता की अग्नि में जले हुए मानुष ठण्डक को प्राप्त कर सकें । ऐसा प्रयत्न तमाम प्रेमियों के वास्ते अधिक जरूरी है ।
15 ) तुम्हारे अन्दर समता के लामहदूद (असीम) दायरे की रोशनी चाहते हैं तुम्हारे अन्दर गुरू भक्ति और ईश्वर परायण जीवन चाहते हैं। तुम क्या प्रेमी सच्चे अधिकारी इस हमारी प्यास को पूर्ण करोगे ? अगर तुमने इनको अपना सच्चा रिफारमर माना है तो जरूरी अपनी कुर्बानी का सबूत देवेंगे । ईश्वर तुमको सामर्थ देवेंगे।
16) हमारी प्रसन्नता तभी हो सकती है जब तुम प्रेमी सच्चे अधिकारी के स्वरूप में देखने में आओगे।
17 ) तुम्हारी जिम्मेवारी तब ही उतर सकती है जब खुद समता की तालीम को अपनाओ और दूसरों को भी कोशिश करके इस तरफ रागिब करो (लगाओ ) । इससे मिलाप प्रकट होता है। किसी वक्त जरूरी देश का भला हो जावेगा। तमाम लिट्रेचर से वाकफीयत (जानकारी) हासिल करें। ईश्वर आनन्द देवे ।

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ब्रह्म सत्यम् सर्वाधार

प्रयोजन

देश के भिन्न-भिन्न भागों में स्थापित आश्रमों, सत्संगशालाओं व अन्य स्थानों पर दैनिक, साप्ताहिक, मासिक व त्यौहारिक समता सत्संग होते हैं। सत्संग का आयोजन करने वाले प्रेमियों को सत्संग के कार्यक्रम बनाने में सुविधा रहे एवं वे इस कार्य को विषयानुसार अच्छे से अंजाम दे सकें, इस प्रयोजन के साथ इस पुस्तिका में सत्संग कार्यक्रम बनाए गए हैं जोकि एक से डेढ घंटा सत्संग के लिए पर्याप्त हैं। आवश्यकतानुसार दो सम्बन्धित विषयों के कार्यक्रमों को जोड़कर सत्संग की अवधि को बढाया भी जा सकता है।
      'सत्संग एक महान कारज है।' इस महान कारज को अंजाम देने वाले प्रेमियों को यदि इस संस्करण से कुछ सहायता व मार्गदर्शन मिले तो यह प्रयास सार्थक होगा और हमारे ऊपर उनकी कृपालुता होगी ।

आवश्यक जानकारी

1. इन कार्यक्रमों में ग्रन्थ श्री समता प्रकाश की जो पृष्ठ संख्या व शब्द संख्या दी गई है वह छठे संस्करण के अनुसार है । पांचवे संस्करण में शब्द संख्या एक कम है व सातवें संस्करण में पेज संख्या 2 अधिक है, शब्द संख्या समान है । अतः शब्द के संकेत बिन्दू से मिलान करें ।
2. संकेत बिन्दू से वाणी शुरू होगी ।
3. जीवन गाथा भाग 1 व भाग 2 के लिए प्रथम संस्करण सन् 1993 का प्रयोग किया गया है।
4. गुरूदेव ने कहा - पुस्तक के प्रश्न छठे संस्करण के अनुसार हैं।
5. विभिन्न विषयों पर गुरूदेव का उपदेशों का संग्रह व प्रेरक प्रसंग विषय सूची में कार्यक्रमों के अन्त में संलग्न किए गए हैं।
6. सत्संग कार्यक्रमों मे वैराग्य वाणी को शामिल नही किया गया है। वैराग्य वाणी का संकलन पृष्ठ संख्या XV, XVI पर दिया गया है।

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7. इसी प्रकार ईश्वर प्रार्थना के सभी शब्द पृष्ठ संख्या xiii, xiv पर दिए गए हैं। आप अपनी सुविधा व समय अनुसार निकाल कर पढ़ सकते हैं।
8. सत्संग के विषय का चयन करने के लिए विषय-सूची से पृष्ठ संख्या xvii से xx देखें, व सत्संग विधि पृष्ठ संख्या Xi पर देखें।

धन्यवाद

धन्यवाद है उन सभी प्रेमियों का जिन्होने इस कार्य को सम्पूर्ण करने में मेरा उत्साहवर्धन व सहयोग किया।
आपके मूल्यवान सुझाव अपेक्षित हैं व अलोचनाओं का स्वागत है।
कार्यक्रम से सम्बन्धित किसी भी प्रकार की जिज्ञासा के लिए दिए गए फोन नं. पर सम्पर्क कर सकते हैं।

क्षमा प्रार्थना

पुस्तक में हुई त्रुटियों के लिए अल्पज्ञ समझकर क्षमा करें।

समर्पण

यह पुस्तिका समर्पित है मेरे सत् गुरूदेव (महात्मा मंगतराम जी) के चरणों में जिनकी प्रेरणा, आशीर्वाद व मार्गदर्शन द्वारा, मुझ जैसे तुच्छ बुद्धि जीव से यह प्रयास बन पड़ा।
सरब शकत तेरी प्रभ पाई, मैं हूँ बल से हीना ।
अपनी किरपा कर राख लें, तँ सरब स्वामी थीना ॥
गुन ज्ञान कछु न धरूँ, ना मन में तप योग ।
'मंगत' होवें दयाल प्रभ, जब पूरन भाग सँजोग ॥
सुनीता आहूजा, जगाधरी
फोन : 9996175123

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ब्रह्म सत्यम् सर्वाधार

सत्गुरूदेव जी द्वारा प्रतिपादित

समता सत्संग विधि

1. महामन्त्र उच्चारण पाँच बार (सम्मिलित रूप से )
2. मंगलाचरण उच्चारण (सम्मिलित रूप से )
3. ईश्वर प्रार्थना व महिमा का शब्द प्रथम पाँच से सात पंक्तियाँ दोहरी (दो बार वक्ता पढ़े, पीछे-पीछे दो बार संगत पढ़े ) फिर एकहरा उच्चारण
4. संगत को सत्संग के विषय की जानकारी संक्षेप में दी जाए
5. विषय से सम्बन्धित वाणी पाठ
6. विषय की वाणी के आधार पर खुला विचार
                   अथवा
गुरूदेव की जीवन गाथा से उपदेश/ग्रन्थ श्री समता विलास से वचन व अन्य समता साहित्य से गुरूदेव की शिक्षाएं
7. वैराग्य वाणी अथवा अंतिम वाणी
8. आरती एवं समता मंगल का उच्चारण (सम्मिलित रूप से)
9.प्रसाद वितरण

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ब्रह्म सत्यम् सर्वाधार

महामन्त्र

ओ३म्     ब्रह्म    सत्यम्     निरंकार
अजन्मा  अद्वैत  पुरखा सर्व व्यापक
कल्याण  मूरत  परमेश्वराय   नमस्तं ।।

मंगलाचरण

नारायन      पद     बंदिये,  ताप    तपन    होये     दूर ।
नमो  नमो  नित चरन  को,  जो  सरब  आधार   हज़ूर ।।

हिरदे  सिमरो   नाम    को,  नित  चरनी  करो दण्डौत ।
सत्  शरधा   से     पूजिये,  रख   सत्गुरु   की   ओट ।।

दुबधा   मिटे   मंगल   होये,  जो चरन  कँवल चित धार ।
रिद्ध सिद्ध आवे  घर  माहीं,  पावें      जय     जयकार ।।

साचा ठाकर सरब समराथा, अपरम     शकत    अपार ।
‘मंगत’      कीजे      बन्दना,  नित     चरनी    बलिहार ।।

सत    मारग   सोझी   मिली,  तन    मन   भया  निहाल ।
गवन     मिटी    संसार   की,  सतगुर     मिले    दयाल ।।

बार    बार     करूँ    बन्दना,  सतगुर     चरनी     माईं ।
‘मंगत’     सतगुर     भेंट    से,  फेर   गरभ   नहीं  आईं ।।
                
बार    बार     करूँ    बन्दना,  सतगुर     चरनी     माईं ।
‘मंगत’     सतगुर     भेंट    से,  फेर   गरभ   नहीं  आईं ।।

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ब्रह्म सत्यम् सर्वाधार

ईश्वर महिमा व ईश्वर प्रार्थना के शब्द ग्रंथ

"ग्रन्थ श्री समता प्रकाश"

"छठे संस्करण" में से दोहरे उच्चारण हेतु

01                                       0                                             नमो निरंजन आद जुगादी 
02                                       01                                           भवसागर में आय के 
03                                       03                                           आध-व्याधी सब मिटे 
04                                       04                                           संतन की सत सीख से
05                                       05                                           एक नाम प्रभ गाइये 
06                                       07                                           सत शब्द की सेव से 
07                                       08                                           निर्भय होय जीव तब 
08                                       09                                           साची बन्दगी साहब की 
09                                       10                                           मांगू भीख साहब दरबार 
91                                               102                                         करें दुहाई साध जन 
165                                    187                                         पूरन पुरख अपार है 
176                                    198                                         परम भगत को पाय के 
178                                    200                                         आज्ञा मानो साहब की 
376                                    463                                         गुण ज्ञान कछू न धरूँ 
479                                    590                                         साचा ठाकर जान के 
510                                    625                                         अनक भाँत उस्तत करूँ 
511                                    626                                         सरब जगत को छाड़ के 
512                                    627                                         दीन बधु करतार तूं 
515                                    630                                         प्रीति साचे नाम की 
558                                    679                                         सो वडभागी जीव है 
559                                    680                                         तू ही सत आद जुगादी 
560                                    681                                         सरब शकत समरथ तूं 
561                                    682                                         तुम दातार सरब दातारी 
562                                    683                                         सब जग भरम सरूप है
563                                    684                                        माँगू नित-नित कीरती 
564                                    720                                        सत सरूप नारायण को

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पृष्ठ सं० शब्द संख्या दोहा संकेत

589                      721                       आवन जावन सब जगत पसारा
589                      722                       अन्धमत को राखें प्रभु
592                      725                        जिसने सब रचना रची
592                      726                       करता हरता जान के
593                      727                        अनेक जनम का भरमता
594                      728                        अवगत रसना नाम की
604                       742                       सतनाम तत जानयाँ
709                       872                       जीवन सब सुफला भयो
710                       873                       मांगू प्रीती चरन की
770                        978                      सत सिख्या जिसने पाई
770                        979                      प्रभ के चरन पुकारयो
771                        980                      पूरन किरपा धार तूं
791                       1006                     बखशनहार प्रभ बखश दे
792                       1007                     सरब शक्त दातार तूं
793                       1008                     तेरे चरन प्रीती मन रसे
813                       1035                     प्रभ की कथा विचारिये
816                       1039                     सत पुरूषारथ धार के
826                       1051                     साची प्रीति चरण की
826                       1052                     देह जोवन का मान हरो
827                       1053                     नाम दीपक परगासयो
864                       1101                     चरन की धूड़ी में रमूं
865                       1102                     तुध तुल दाता न कोये
1071                     1370                     अवगत रूप तूं पसरया
1072                      1371                    पारब्रह्म परमेश्वर
1129                      1441                    अत दुस्तर ये संसार है 
1130                      1442                    आसा जग की त्याग के
1130                      1443                    आसा निर्मल चरन की
1131                      1444                    अपनी गत मित आप पछाने
1144                      1460                    अपनी लीला धार के
1144                      1461                     दीन दयाल प्रभ दया कर
                                                           'आपे किरपा करे स्वामी' से
1146                      1463                      साची भगती प्रेम रस

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वैराग्य वाणी

पृष्ठ सं० शब्द संख्या दोहा संकेत

34                         43                          कहाँ से आया
  49                        53                          जुग जुग होए अरदास
                                                            'लोक कुटुम्ब न संग चले' से 
  112                      126                        निर्मल जुगती ज्ञान की 
  135                      155                        मौत की याद
                                                            'मरना मनो विसार' के 
  180                      203                        सत ही सार जगत में जानो
                                                            'हाड-मांस का पिंजरा' से
  182                      204                        ठाकर साचा जानकर
                                                            चार दिनाँ की खेड है' से
  185                      206                        जतन-जतन कर राखियो
                                                            'कायी देह का पिंजरा' से
  187                      207                        सत करनी सत रहनी
                                                            'राजा दुखिया परजा दुखिया' से
  198                      220                        चार दिसां चौदह भवन को 
                                                            'नित निमाना नित परदेसी' से
  257                      300                        नाद निरंतर मनुआ छेदे......
  265                      310                        सतनाम सत साधना
  266                      312                        ऐसो ही एह चक्कर है
  390                      483                        साची प्रीति राख के
                                                            'मोह माया गुवार' से
  413                      520                        क्या लीला सतपुरुष की
  742                      906                        प्रभ का सिमरन सार है

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वैराग्य वाणी

पृष्ठ सं० शब्द संख्या दोहा संकेत

743                          980                               आसा रूपी अगन ये ये 
744                          909                                ये  संसार सराये
745                          910                                बालापन को जोबन खाये 
746                          911                                रंचक मातर सुख नहीं
746                          912                                बिख बीजे निसदिन गुनी 
747                          913                                पानी का यह बुदबुदा 
1219                        1565                              घनी सयानफ नित करी 
1221                        1570                              तेरा कोई संगी ना साथी 
1221                        1571                              ऐसे सबने उठके चलना 
1226                        1585                              नाम जपत से भरमन नासे 
1233                        1606                              उठ जाग मुसाफिर रे मन मेरे 
1245                        1633                              अन्तर निर्मल प्रीत लखावे 
1246,47                   1637-42                         पूरन करमी सो बुद्धिमाना से 
                                                                      'प्रभ सिमरन सत्संग परीती' तक 
1257                        1657                              मारग दुस्तर जगत में 
1260                        1660                              अन्तर मनुआं राखिये 
1265                        1667                              अवगत धाम परापत पायो 
                                                                      ( चौपाई वाले शब्द ) 
98                            110                                जग का सब संसा तजे 
313                          350                                अपना सीस त्यागिये '
                                                                      ना कोई मित्तर संग सहेला' से 
443                          552                                इच्छया चक्कर में भरम रह्या 
699                          861                                संकट रूप ये जगत है

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सत्संग कार्यक्रम

विषय सूची

क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या

1                 अपनी करनी ही सहायक                     1
 2                 आत्मज्ञान की महिमा                          2
 3                 आज का हमारा जीवन कैसा                 3
 4                 आध्यात्मिक जीवन का आधार त्याग      4
 5                 आहार का जीवन पर प्रभाव                  5
 6                 आज का हमारा अशुद्ध व्यवहार             6
 7                 आज का हमारा धर्म/रिवाजक धर्म           7
 8                 इन्द्रिय भोगों में अतृप्ति                          8
 9                 इच्छा एक महारोग                              9
 10               ईश्वर की खोज कहाँ करें                       10 
 11               ईश्वर के अनन्त नामों पर विचार              11
 12               ईश्वर से क्या माँगना चाहिए                    12
 13               ईश्वर की याद / प्रार्थना का महत्त्व            13
 14               ऐसे थे गुरूदेव हमारे                             14
 15               कर्मों का कर्ता बनना दुःख का कारण       15
 16               कपटी/कलयुगी साधु के लक्षण               16
  17              गुरू महिमा व उपकार                           17
  18              गुरू की आवश्यकता जीव को क्यों है       18
  19              गुरू समर्पित जीवन कैसा होता है             19
  20              गुरू खेवट संसार का                             20
  21              गुरू कृपा प्राप्त क्यों नहीं होती ?               21
  22              गृहस्थ जीवन सुखी कैसे बने                   22
  23              गुरमुख व मनमुख पर विचार एवं अंतर      23
  24              जगत की बिस्माद रचना/बाहरमुखी व अर्न्तमुखी 24
  25              जीवन कैसे जिएं                                   25
  26              जीव की जीवन यात्रा की अवस्थाएं           26
  27              जीव की गति कैसे हो सकती है                 27
  28              जीवन में गुरूमुखता कैसे आए                  28

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सत्संग कार्यक्रम

विषय सूची

क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या

29               जीव के बंधन का कारण व निवारण                            29 
 30               जीवन का सुधार कैसे हो                                          30
 31               जीव का स्वभाव कैसे बनता है                                   31
 32               जीव की सांसारिक यात्रा कैसे                       32
 33              दूसरा साधन सत में दृढ़ता कैसे हो/सत्य की महिमा         33
  34              देवी-देवताओं की वास्तविक पूजा कैसे की जाती है        34
  35              देह की ममता जीव के आवागमन का कारण                 35
  36              दुःख रूप संसार/इन्द्रिय भोगों में अतृप्ति                        36
  37              धर्म का वास्तविक स्वरूप                                         37
  38              धर्म मार्ग में गुरू शिष्य सम्बन्ध                                   38
  39              नाम सिमरन की महिमा व लाभ                                  39
  40              निष्काम कर्म कैसे करें                                              40
  41              निष्काम कर्म मुक्ति का मार्ग                                       41
  42              निर्गुण-सगुण पूजा पर विचार                                      42
  43              निष्काम कर्म/ कर्म बन्धन से छूटने का उपाय                  43
  44              प्रभु आज्ञा में जीवन कैसे जिएँ                                    44
  45              प्रभु प्रेम मे बाधा, प्रभु प्रेम कैसे प्राप्त हो                         45
  46              पर वस्तु का हेत दुःखदायी                                        46
  47              पाप कर्म क्या है                                                      47
  48              प्रभु शरणागति-लाभ व शरणागति कैसे आए                 48
  49              परिवार, समाज व देश सेवकों का जीवन कैसा?             49
  50              प्रभु अनुराग/सत् परायणता                                        50
  51              प्रभु विश्वास आवश्यकता व लाभ                               51
  52              बन्धन व मुक्ति का कारण जीव स्वयं                            52
  53.             बिना भक्ति जीवन                                                   53
  54              भक्ति का सही स्वरू                                                54
  55              मन जीतने के उपाय                                                 55
  56              मानुष जन्म का उद्देश्य                                              56
  57              मन का विस्तार                                                      57

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सत्संग कार्यक्रम

विषय सूची

क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या

58                    मन का मान दुःखदायी                             58
 59                    महामन्त्र की महिमा                                 59
 60                    मानुष जन्म की महानता                            60
 61                    मनुष्य का कल्याण कैसे                            61
 62                    वास्तविक तीर्थ यात्रा                               62
 63                    वैर-भाव से हानि                                     63
 64                    विचारहीन जीवन                                    64
 65                    शुद्ध व्यवहार का लाभ                             65
 66                    सत् धर्म की महिमा                                 66
 67                    सत् पुरूषार्थ क्या है व इसकी महिमा           67
 68                    सत् विवेक की महिमा                             68
 69                    सत्गुरू की कृपा का स्वरूप                      69
 70                    सत् साधु के लक्षण, प्रभाव                       70
 71                    सत्संग की आवश्यकता व लाभ                71
 72                    सत् सेवा की महिमा                               72
 73                    सादगी                                                73
 74                    सदाचारी जीवन कैसे बने व इसके लाभ      74
 75                    साधु संग की महिमा                               75
 76                    सुख-शान्ति कैसे प्राप्त हो                         76
 77                    सत्कर्म-कौन से कर्म सत्कर्म व सत्कर्म की महिमा 77
 78                    सत्संग का सही स्वरूप व लाभ                 78
 79                    समता यज्ञ की महिमा                              79
 80                    सत् सेवा की आवश्यकता व सेवा का सही स्वरूप 80
 81             संकट रूप मन की कल्पना                       81 
 82                    समता ज्ञान की प्राप्ति कैसे हो                      82
 83                    संसार की रचना कैसे ?                             83
 84                    संसार क्या है ?                                       84
 85                    सत्कर्मों की महिमा                                  85
 86                    समता ज्ञान की महिमा                              86

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सत्संग कार्यक्रम

विषय सूची

क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या

87             सकाम कर्म जीव के बन्धन का कारण                87
  88             सब दुःख संताप को दूर करने का एकमात्र उपाय  88 
 89              सिमरन में दृढ़ता कैसे हो ?                             89
  90             सत्पुरूषों की वास्तिवक पूजा                 90
  91             स्वार्थ और परमार्थ                                        91
  92             हमारे जीवन का कल्याण                                 92
  93             त्रैगुणी माया का स्वरूप                                   93

निम्न विषयों पर गुरूदेव के उपदेशों का संग्रह

1                 त्-सेवा, सेवा का सही स्वरूप                          94,98
2                 गुरू की आवश्यकता व महानता                       100
3                 शरणागत गुरूदेव की ईश्वर द्वारा रक्षा व हाजरी       104
4                 कर्मदण्ड के भय से स्वभाव में परिवर्तन                107
5                 अशुद्ध व शुद्ध व्यवहार का प्रभाव                      109
6                 आज की पूजा/आज का धर्म                            114
7                 जीवन कैसे जिएं / सुख शान्ति कैसे आए             118
8                 मनुष्य जीवन का उद्देश्य व जीवन सफल कैसे हो    122
9                 तृष्णा महारोग                                                125
10               प्रभु प्रार्थना की आवश्यकता                              129
11               धर्म का वास्तविक स्वरूप एवं लक्षण                   132 
12               दुःख रूप संसार                                              134
13               सुख कैसे मिले ?                                             139
14               सत्संग का लाभ व स्वरूप                                 143
15                महामन्त्र की महिमा                                        148
16               आरती एवं मंगलाचरण                                     161
शुभ अवसरों हेतु क्रमांक 12, 13, 22, 25, 30, 37, 48, 51, 60, 61, 66, 71, 78, 85 व 92 तथा अशुभ अवसरों हेतु क्रमांक 1, 8, 26, 27, 32, 36 पर दिए गए विषयों पर सत्संग किया जा सकता है।