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ग्रन्थ

श्री समता प्रकाश

अनुभवी अगम-वाणी

श्री सत्पुरुष पूज्य सद् गुरुदेव मंगतराम जी महाराज

संगत समतावाद (रजि०)

समता योगाश्रम
जगाधरी - 135003
हरियाणा`

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प्रकाशक :
संगत समतावाद (रजि०) 
समता योग आश्रम , छछरौली रोड,
जगाधरी-135003
यमुनानगर (हरियाणा)
प्रथम संस्करण सं०  2011 वि०......1000
द्वितीय संस्करण सं० 2026 वि०.....2000
तृतीय संस्करण सं०  2040 वि०......1000
चतुर्थ संस्करण  सं० 2053 वि०......1200
पंचम संस्करण  सं० 2060 वि०......1100
छटा संस्करण   सं०  2072 वि०.....1100
जुमला हकूक़ महफूज़ हैं 
(सर्वाधिकार सुरक्षित है)
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प्राप्ति स्थान : 
समता योग आश्रम-छछरौली रोड
जगाधरी-135003
यमुनानगर (हरियाणा)

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समता

अपार शक्ति

महामन्त्र

ब्रह्म सत्यम्

निरंकार अजन्मा अद्वैत पुरखा

सर्व व्यापक कल्याण मूरत

परमेश्वराय नमस्तं

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ग्रन्थ 'श्री समता प्रकाश' की मूल पाण्डुलिपि (उर्दू मे) प्रस्तुत ग्रन्थ इसी का हिन्दी रूपांतर है

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दीबाचा (प्रस्तावना)

यह अद्भुत-विचार अगम-वाणी श्री सद्गुरूदेव मंगत राम जी महाराज के मुख-वाक्यामृत हैं जो उन्होंने तमाम विश्व के कल्याण के वास्ते परगट फरमाए हैं। 
श्री महाराज जी ने जन्म-सिद्ध स्वरूप में संसार के उद्धार की ख़ातिर भिन्न-भिन्न स्थानों पर बिगड़े हुए हालात को मद्देनज़र रखते हुए भिन्न-भिन्न प्रसंगों में तमाम वाणी उच्चारण फ़रमाई और हाज़िर ज़माने की जनता को 'समता' यानी एकता के मार्ग पर चलने का उपदेश दिया जो परम कल्याण स्वरूप है और इस तमाम वाणी का एकत्र स्वरूप 'श्री समता प्रकाश' ग्रन्थ के रूप में प्रकाशित हुआ है।
तमाम सज्जन इस सहज, सरल, अगम-शिक्षा को अपना करके अपने जीवन की उन्नति करें।
जुमला हकूक़ महफूज़ हैं           प्रकाशक
(सर्वाधिकार सुरक्षित है) संगत समतावाद (रजि०) 
समता योग आश्रम , जगाधरी 
यमुनानगर (हरियाणा)

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प्रथमावृत्ति

प्रत्येक संत महात्मा या महापुरुष के जीवन के उत्तरार्द्ध में एक ऐसा समय आता है जब लोग इस बात की आवश्यकता का अनुभव करने लगते हैं कि उनकी वाणी संगृहीत हो जानी चाहिए जिससे कि व्यापक रूप से तथा चिरकाल तक मानवता का कल्याण हो सके। पूज्य श्री सतगुरुदेव महात्मा मंगतराम जी महाराज के भक्तों के हृदय में भी इसी प्रकार की भावना का जागरण हुआ। मई 1947 में काश्मीर राज्य के जिला अनंतनाग के अंतर्गत कारकुटनाग नामक स्थान पर श्री महाराज जी के एक प्रियभक्त के द्वारा इस कार्य का श्रीगणेश हुआ तथा अप्रैल 1948 में 'सिद्ध-खड्डू' मसूरी, ज़िला देहरादून में यह पवित्र कार्य श्री महाराज जी के हस्ताक्षर सहित सम्पूर्ण हुआ। ग्रन्थ 'श्री समता प्रकाश' इसी प्रयास का मूर्तिमान रूप है, इसमें सात खंड हैं। पहले खंड में परम पुरुष की प्रार्थना तथा दूसरे में महाराज जी के द्वारा भक्तों को दिए गए उनके प्रश्नों के उत्तर हैं। तीसरे खंड का विषय साधक के जीवन की विभिन्न अवस्थाएँ तथा सदाचरण सम्बंधी विचार हैं। चतुर्थ खंड में आध्यात्मिक समस्याओं की विवेचना तथा पवित्र जीवन पर महाराज जी की वाणी संकलित हैं। पंचम खंड का सम्बंध योग एवं वैराग्य से है। छठे खंड में शून्यकर्म, नाद-ब्रह्म, निष्कामकर्म वाणी तथा सत्पुरुषों के सम्बंध में श्री महाराज जी के निर्णयों का तथा अतिम सप्तम खंड में मिश्रित वाणी का संग्रह किया गया है।
मूल रूप में महाराज जी की वाणी उर्दू भाषा में लिपिबद्ध हुई किंतु बाद में श्रद्धालुओं के आग्रह पर उसे देवनागरी लिपि में लिखा गया और छपाई उत्तर प्रदेश के एक प्रेस में हुई। यद्यपि पूज्य श्री महाराज जी की वाणी को ज्यों का त्यों पाठकों के सम्मुख रखने का पर्याप्त प्रयत्न किया गया है, किंतु कई हाथों से गुजरने के कारण प्रथम संस्करण में अशुद्धियों का रह जाना नितांत स्वाभाविक है। हम उसके लिए क्षमा प्रार्थी हैं। भविष्य में ग्रन्थ जको अधिकाधिक शुद्ध रूप में प्रस्तुत करने की भरपूर चेष्टा की जाएगी ।

द्वितीयावृत्ति

इस दूसरे संस्करण में श्री महाराज जी की वाणी को मूल रूप में प्रस्तुत करने का यत्न किया गया है ।

तृतीयावृत्ति

'श्री समता-प्रकाश' ग्रन्थ की तृतीय आवृत्ति प्रस्तुत करते हुए हम आनन्द का अनुभव करते हैं। इस ग्रन्थ की अगम देव-वाणी के माध्यम से सत्पुरुष श्री सतगुरुदेव महात्मा 'मंगत राम' जी महाराज ने जनता जनार्दन को समता-मार्ग अपनाने का आह्वान किया है।
इस आवृत्ति में ग्रन्थ की उर्दू मूल पाण्डुलिपि से अच्छी तरह मिलान किया गया है। दूसरी आवृत्ति में जो अशुद्धियां रह गई थीं वे दूर करने का भरसक प्रयास किया गया है। पृष्ठ संख्या का क्रम भी अब मूल पाण्डुलिपि की पृष्ठ संख्या के क्रम के अनुसार ही बना दिया गया है। शबद संख्या में भी कुछ अदल बदल किया गया है। शबद संख्या का आधार अब प्रत्येक स्थल में 'मंगत' शब्द है न कि दोहा।
ग्रन्थ के अन्त में एक 'परिशिष्ट अंग' जोड़ा गया है जिसकी सहायता से पाठक-गण को ग्रन्थ के अध्ययन में सुविधा होगी।
छपाई और गेटअप पहले से ही अधिक सुन्दर बनाने का प्रयत्न किया गया है ।
श्रद्धालु पाठक-गण को 'समता-मार्ग' उज्जवलित करने में यह ग्रन्थ सार्थक हो ।

चतुर्थावृत्ति

ग्रन्थ के अन्त में 'शब्दार्थ' का 'परिशिष्ट अंग' जोड़ा गया  है। इस की सहायता से पाठक-गण को ग्रन्थ के अध्ययन में सुविधा होगी।

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पंचम आवृत्ति

ग्रन्थ 'श्री समता प्रकाश' में लिखी वाणी जिन विशेष परिस्थितियों में प्रकट हुई एवं लिखी गई, उन का वर्णन परमावश्यक समझा गया है, जो इस प्रकार है:-
यह पवित्र वाणी श्री सतगुरुदेव महात्मा मंगत राम जी महाराज के मुखारबिन्द से उस समय स्वतः प्रस्फुटित हुई, जब वे हिमालय पर्वत की श्रृंखला में, बर्फ से ढकी चोटियों के नीचे, नदियों के तट पर, घने जंगलों में रमणीय प्राकृतिक वातावरण में तप के दौरान प्रायः गहन अर्धरात्री काल में समाधि अवस्था में आनन्दमग्न होते थे। -
इस अलौकिक वाणी को श्री गुरुदेव जी के सदैव साथ रहने वाले एक परम श्रद्धालु सेवक श्री भगत बनारसी दास जी उर्दू भाषा में नोट कर लिया करते थे।
हिंसक पशुओं से भरे घनघोर वनों, बर्फीली पहाड़ियों और यहाँ तक कि एक बार श्मशान घाट में, सर्दी से हाथों की ठिठरन को बचाने हेतु चिता के ताप से हाथ सेंक कर, और चिता की अग्नि की रोशनी में श्रद्धेय सेवक द्वारा वाणी लेखन का कार्य सम्पन्न हुआ।
यद्यपि अब तक देवनागरी लिपि में चार संस्करण छप चुके हैं, तथापि छपाई में जाने अनजाने कई त्रुटियां रह गई थी।
संगत समतावाद के कुछ कर्मठ प्रेमीजन द्वारा अपनी अमूल्य निष्काम सेवा उपलब्ध कराने के फलस्वरूप, इस बार विशेष रूप से उर्दूग्रन्थ मूल प्रतिलिपि से प्रस्तुत देवनागरी लिपि में पंचम संस्करण का मिलान अक्षरशः पृष्ठ संख्या मिलान एवं मौलिक शुद्ध उच्चारण का ध्यान रखा गया है ताकि प्रस्तुत संस्करण पूर्णतया त्रुटि रहित उपलब्ध हो सके। इस सम्पूर्ण प्रयास में सर्वोपरि कृपा श्री सतगुरुदेव महाराज की ही रही है। अपनी ओर से भरसक प्रयास के बावजूद भी मानवीय कृति में त्रुटि रह जाना सम्भव है, अतः समस्त आदरणीय पाठकगण से नम्र निवेदन है कि जो भी त्रुटि उन्हें दृष्टिगोचर हो, कृपया शीघ्र ही सूचित कर अनुगृहीत करें, ताकि भविष्य में उसे दूर किया जा सके।

षष्ठम् आवृत्ति

संगत समतावाद के कुछ कर्मठ प्रेमीजन द्वारा अपनी अमूल्य निष्काम सेवा उपलब्ध कराने के फलस्वरूप, इस बार विशेष रूप से उर्दूग्रन्थ मूल प्रतिलिपि से प्रस्तुत देवनागरी लिपि में षष्ठम् संस्करण का मिलान अक्षरशः पृष्ठ संख्या मिलान एवं मौलिक शुद्ध उच्चारण का ध्यान रखा गया है ताकि प्रस्तुत संस्करण पूर्णतया त्रुटि रहित उपलब्ध हो सके। इस सम्पूर्ण प्रयास में सर्वोपरि कृपा श्री सतगुरुदेव महाराज की ही रही है। अपनी ओर से भरसक प्रयास के बावजूद भी मानवीय कृति में त्रुटि रह जाना सम्भव है, अतः समस्त आदरणीय पाठकगण से नम्र निवेदन है कि जो भी त्रुटि उन्हें दृष्टिगोचर हो, कृपया शीघ्र ही सूचित कर अनुगृहीत करें, ताकि भविष्य में उसे दूर किया जा सके।
सदैव आभारी
 संगत समतावाद (रजि०)
समता योग आश्रम - जगाधरी - 135003
यमुनानगर, हरियाणा

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'श्री समता-प्रकाश' ग्रन्थ के स्वाध्याय अर्थात् पाठ के सम्बन्ध में श्री सतगुरुदेव महाराज जी द्वारा निर्धारित नीति

(1)किसी भी प्रोग्राम में ग्रन्थ का पाठ सतसंग की नीति अनुकूल आरम्भ करना तथा समाप्त करना योग्य है। 
(2)किसी भी प्रोग्राम में सम्पूर्ण ग्रन्थ को समाप्त करने का निश्चय रख कर पाठ दिन-रात करने का भी निषेध (मुमानियत) है। इससे निर्मल स्वाध्याय का भाव समाप्त हो जाता है। केवल व्यवहार अनुसार नीति बन जाती है, जो कि सही धर्म के अनुकूल नहीं है।
(3)निमित्त काल पाठ अर्थात अखण्ड पाठ, साप्ताहिक पाठ, अर्द्ध-मासी पाठ या मासिक पाठ का भी निषेध (मुमानियत) है। यह भी एक मदवाद का निश्चय होने के कारण निर्मल स्वाध्याय का स्वरूप समाप्त कर देता है और एक व्यवहार मात्र ही रह जाता है।
(4)नित्यकाल पाठ अर्थात् आम समय के अनुसार सतसंग नीति अनुकूल पाठ शुरू करना और समाप्त करना केवल अधिक से अधिक निश्चित समय के अनुसार कुछ प्रसंगों को सम्पूर्ण करना ही शन्तिमय कल्याणकारी पाठ है। इससे निर्मल स्वाध्याय कायम (स्थिर) रहता है और चाहे (ख़्वाहे) इसी तरह रोज़ाना स्वाध्याय करते-करते तमाम ग्रन्थ को ख़त्म (सम्पूर्ण) ही कर दिया जावे। ऐसा स्वाध्याय समता के अनुकूल है। 
(5)वाणी के स्वाध्याय में ऐसा निश्चय दृढ़ रहना चाहिए जिससे ईश्वर पूजा और सत्कर्त्तव्य की पूजा बढ़ती जावे जो निर्मल कल्याण के देने वाले भाव हैं।
(6)वाणी का स्वाध्याय अन्तःकरण की शुद्धि करने के वास्ते है जिससे सत्कर्त्तव्य में प्रवीण हो करके मानसिक दोषों का नाश किया जावे। ऐसा निश्चय श्रोताओं और पाठकों का होना चाहिए।
(7)जब केवल वाणी का पाठ ही करना कल्याण समझ लिया जावे और सत्कर्तव्यता का पालन करने में कायरता धारण कर ली जावे तब वह कथनी मात्र ज्ञान सत्धर्म का नाश करने वाला हो जाता है।
(8)समता की नीति में वाणी का स्वाध्याय केवल अन्तःकरण की शुद्धि के वास्ते करना ही योग्य है जो सत्कर्तव्य में दृढ़ निश्चय करे। इस भावना के बिना केवल पाठ रवां करना और सतकर्त्तव्य या स‌न्निदिध् यास की धारणा से हीन होना समतावादी सज्जन या और किसी पाठक सज्जन के वास्ते पूर्ण श्रेष्ठ सफलता के देने वाला निश्चय नहीं है।
(9)किसी समय या किसी प्रोग्राम में ग्रन्थ 'श्री समता प्रकाश' का पाठ सत्संग की नीति अनुकूल ही शुरू करना और ख़तम करना योग्य है और प्रसंग मात्र को सम्पूर्ण करना ही पाठ की सम्पूर्णता है चाहे इस तरह सतसंग स्वाध्याय करते करते सारे ग्रन्थ को सम्पूर्ण कर दिया जावे। ऐसे निर्मल स्वाध्याय से बुद्धि निर्मल होकर के सत्-परायण होने का यत्न करती है और सहज ही तमाम संकटों और दोषों से कल्याण को प्राप्त होती है। ऐसा पवित्र निश्चय सबको होना चाहिये।
(10)'श्री समता-प्रकाश' ग्रन्थ को इस सरल, सहज और पवित्र भाव के अनुसार स्वाध्याय करना तमाम तोहमात, विघ्न, दोषों और संकटों से छुटकारा देने वाला साधन है और सत्वाद के निश्चय को दृढ़ करने वाला है, ऐसा निश्चय सबको होना चाहिए।
(11) सत्-वाणी का स्वाध्याय करना और पूर्णरूप में समझना और अमल में लाना ही सही पाठ की नीति है। ऐसे ही सब पाठकों और श्रोताओं को बोध होना चाहिए।
(12) ग्रन्थ 'श्री समता प्रकाश' के सम्बन्ध में जो पाबन्दियां ग्रन्थ के अन्त में तहरीर हो चुकी हैं, उन पर पूर्ण रीति से कारबन्ध रहना चाहिए।
 सब प्रेमी निर्मल स्वाध्याय ग्रन्थ 'श्री समता प्रकाश' के नियमों को समझ लेवें!
सत् आज्ञा श्री सतगुरुदेव जी महाराज

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समता

अपार-शक्ति

ब्रह्मसत्यम् सर्वाधार

ग्रन्थ

श्री

समता प्रकाश

श्री मुख-वाक् अमृत
श्रीमान् पूज्यनीय श्री सद् गुरुदेव महाराज
मंगतराम जी महाराज  
(पवित्र जन्मभूमि शुभस्थान गंगोठियाँ, 
ज़िला रावलपिण्डी-पंजाब, अब पाकिस्तान में है)

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-: सूचिपत्र :-

ग्रन्थ

श्री समता-प्रकाश

क्रम सं० विषय पृष्ठ

पहला अंग- प्रार्थना                                                                             1
दूसरा अंग - समदर्शन योग      पहला मार्ग      - सारतत्त न्याय                32
                                           दूसरा मार्ग      - अथ विज्ञान मात्रा          200                 
                                           तीसरा मार्ग     - योग चिन्तामणि            220
                                           चौथा मार्ग       - विवेकमाला                 239
                                           पांचवा मार्ग      - सतसार प्रकाश           267
तीसरा अंग-समता स्थिति योग पहला प्रसंग    - निर्बन्ध जीवन प्रकाश    283
                                           दूसरा प्रसंग    - समतत्त विचार              344
                                           तीसरा प्रसंग   - अथ जीवगती सिद्धान्त  416           
                                           चौथा प्रसंग     - सतनाम प्रबोध मार्ग       539
चौथा अंग - चिरंजीव गोष्ठ       पहला विवेक   - अध्यात्म बोध               611
     (पवित्र जीवन सहित)        दूसरा विवेक    - सतमार्ग की पहचान      616
                                           तीसरा विवेक   - सतसाधु की महमा       638
                                           चौथा विवेक     - सत्पुरुषों की समानता  649
                                           पांचवा विवेक   - सत्नियम जीव उद्धारक 654   
                                            छटा विवेक      - पवित्तर जीवन             657
पांचवा अंग - निखेत्र पर्वत गोष्ठ पहली किरण    -   भगती तत् प्रकाश     665 
                                            दूसरी किरण    -  अन्तरगत् सार शबद    723                                                                                            
                                            तीसरी किरण   -  वैराग अंग                 742
छटा अंग-समता सार योग        पहला भाग      -  निर्वान सिद्धि             757
                                            दूसरा भाग       - विजय मंगल              1077
                                                                 - द्वादस मासी विवेक    1098
सातवा अंग-समता विज्ञान योग  पहला रस         - जीवन सार बोध       1105
                                             दूसरा रस      - ज्ञान नेष्टा (निष्ठा) प्रबोध1166
                                                                   -आलख वाणी          1185
                                             तीसरा रस         - तिथि विवेक         1197
                                                                    -सिमरण दीपक      1207
                                                                    -आनन्द सार          1215
                                                                    - समता शान्ती       1248
                                                                    - वाणी-सार-अमरत्  1273
                                                           - समाप्ति ग्रन्थ श्री समता प्रकाश275
                                                                    - चेतावनी             1276

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बानी सिख्शा सार

(श्री सत्गुर परशाद अमरत)

ये अगोचर बानी तत्त समता खोजो , सब कलह कलेश होवें छार ।
सत शरधा से नित  निरना  सूझो , मिले  निर्मल  विवेक   अपार ।।
समता मारग परस अत    निर्मल , नित   निरबन्ध   जीवन   पाई । 
मानुष   जनम   दुर्लभ     होवे , मिल  साध   संगत   तत्त   ध्याई ।। 
सब   जीवों   से   उपजे    प्रीती , नित  सबकी  कल्यान  विचारी । 
सत   सरूप   को   अनन   चित्त   पूजे , नित  होवे सत आधारी ।। 
भरम  सूतक   पातक   आध   उपाधी,  तीन    ताप   दुःख     दूरे । 
जो तत्त बानी  निध्यासन  कीजे , होवें    सकल     मनोरथ    पूरे ।। 
आज्ञा      परमपुरुष     से    ये   , अत गुह्म तत्व  ज्ञान   परगास्यो । 
'मंगत'    श्रवन   मनन    जो   कीजे, होवें सकल दोष चित्त नास्यो ।।

श्री सत्गुरू महाराज जी

की कृपा दृष्ट से तुच्छ सेवक से तुच्छ सेवा बन आई

श्री समता प्रकाश

अनुभव बानी 
श्री सत्गुरू वाक्-अमरत् लिखत सम्पूर्णम
समां बैसाख संक्रान्त संवत् 2005 बिक्रमी.
श्री सत्गुरू चरन-निवासी अत तुच्छ सेवक

दास बनारसी दास

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विषय संकेत

विषय पृष्ठ

{1} प्रथम अंग-प्रार्थना......................................1-32
(1) ईश्वर महिमा..............................................1-.5
(2) अविनाशी शब्द का ध्यान..............................6
(3) इच्छा रोग कैसे मिटे....................................12
(4) असत् माया संसार.....................................13
(5) नाम की महिमा.........................................15
(6) शब्द की महिमा.........................................17
(7) नाम सिमरण से कर्म-वासना नाश..................19
(8) अभिमान युक्त कर्म-सन्ताप..........................20
(9) मन की भरमणा और उपाय.........................23
(10) मन-विक्षेप कैसे दूर होवे............................24
(11) सच्ची शिक्षा...........................................27
{2} द्वितीय अंग-समदर्शन योग........................32-283
(1) प्रथम मार्ग-सारतत्त्व न्याय.........................32-200
(क) संसार की उत्पत्ति......................................32
(1) मनुष्य जीवन की सार.................................34
(2) कर्म-रेख अटल है.......................................35
(3) धर्म की महिमा..........................................36
(4) धर्मात्मा पुरुष के लक्षण..............................39
(5) शब्द की महिमा....................................... 41
(6) सद्‌गुरु लक्षण......................................... 42
(7) नाम की महिमा....................................... 44
(8) सिमरण फल-शब्द प्राप्ति............................46
(9) मिश्रित वाणी...........................................47 
(10) सत्पुरुषों की सांझी साखी/भक्ति................48
(11) वैराग्य वाणी..........................................50
(12) सामान्य आदेश......................................51
(13) मन का विस्तार/भरम रूप संसार...............52
(14) जगत-वृक्ष विस्तार..................................54
(15) योगावस्था वर्णन-I..................................55
(16) सत् तत्त की महिमा................................58
(17) सच्चे सुख हेतु भ्रमण..............................59
(18) हरि भक्ति की महिमा..............................60
(19) हरि भक्त का जीवन................................61
(ख ) मुसलमानी भेद......................................61-65
(1) सच्चा मुसलमान......................................61
(2) मोमिन/सच्चा फ़क़ीर................................65
(ग) सतगुरु के लक्षण.....................................66-76
(1) सतगुरु का स्वरूप दर्शन............................66
(2) सच्चे शिष्य का स्वरूप दर्शन.......................67

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विषय पृष्ठ

(3) गुरु एवं शिष्य संवाद...............................69
(4) सच्चे शिष्य की मान्यताएं.........................71
(5) मनुष्य की दुःख लीला.............................74
(6) सत शिष्य का भेष..................................75
(घ) ब्रह्मण की पहचान..................................76-101
(1) सच्चे ब्रह्मण के लक्षण..............................76
(2) कलयुगी ब्रह्मण.......................................79
(3) मिश्रित वाणी..........................................80
(4) 'ओहंग ब्रह्म' महिमा..................................84
(5) योगावस्था वर्णन II...................................85
(6) अलख शब्द विचार...................................89
(7) पाखण्ड विवेचना......................................90
(8) प्रभु प्रार्थना..............................................91
(9) योगावस्था वर्णन III..................................92
(10) त्यागी पुरुष वर्णन...................................97
(11) चेतावनी वाणी........................................99
(12) ईश्वर महिमा वाणी..................................100
(ड) गुरमुख मनमुख पर विचार.........................101-107
(च) सतनाम की असलियत.............................107-116
(1) ईश्वर के अनन्त नामों पर विचार....................107
(2) नामरूपी शब्द की विशेषता.........................111
(3) चेतावनी वाणी..........................................113
(4) मिश्रित वाणी............................................115
(छ) सच्चा प्रेम...............................................117-121
(ज) सच्चा सिद्ध योगेन्द्र....................................122-126
(झ) सदाचार..................................................127-144
(1) सत् विश्वास...............................................130
(2) सत् पुरुषार्थ...............................................131
(3) सत् विचार.................................................131
(4) निर्मानता...................................................132
(5) परोपकार...................................................132
(6) अपनी वस्तु पर सन्तोष..................................133
(7) प्रेम...........................................................133
(8) सादगी.......................................................134
(9) सत्संगत.....................................................134
(10) मृत्यु की याद.............................................135
(11) जीवन और मृत्यु पर विचार...........................136
(ञ) शब्द की पहचान..........................................145
(ट) गुरु तथा शिष्य वचन......................................146
ट) गुरु तथा शिष्य वचन........................................146
(ठ) साधु के वचन...............................................148
(ड) दुर्लभ साधु के वचन........................................150

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विषय पृष्ठ

(ढ) भक्ति की महिमा.............................161
(ण) भक्त की महिमा.............................162
(त) सेवा की महिमा..............................162
(थ) सत्य की महिमा.............................179
(द) धर्म की महिमा...............................182
(ध) सत्संग की महिमा...........................191
(2) द्वितीय मार्ग-विज्ञान मात्रा............200-219
        सत् आज्ञा निरंकार........................212
(3) तृतीय मार्ग-योग चिंतामणि............ 220-239
(4) चतुर्थ मार्ग-विवेक माला.................239-267
        सुरति शब्द योग...........................266
(5) पंचम मार्ग-सतसार-प्रकाश..............267-283
        अरदास......................................282
{3} तृतीय अंग-समता स्थिति योग.........283-610
(1) पहला प्रसंग-निर्बन्ध जीवन
        प्रकाश.......................................283-610
(क) सत् तत्त्व की महिमा......................283
(ख) सत् विश्वास.................................292
(ग) सत् साधन...................................302
(घ) पवित्र आहार................................306
(ड़) शुद्ध व्यवहार.................................307
(च) अशुद्ध व्यवहार..............................308
(छ) सत सेवा......................................309
(ज) नीच का संग.................................315
(झ) साधु की संगत..............................319
(ञ) प्रभु सिमरण महिमा.......................321
(ट) मनमुखता.....................................326
(2) आत्म तत्त्व प्रवीण गुरु महिमा............329
(ड) सत् विवेक की महिमा......................329
(2) दूसरा प्रसंग-समतत्त्व विचारं..........344-416
(क) कर्मगति पर विचार.........................359
(ख) मंगलाचरण...................................377
ग) ईश्वर महिमा....................................378
(घ) चेतावनी........................................392
(ड) जिज्ञासु धर्म...................................397
(च) महामन्त्र की महिमा..........................414
(3) तीसरा प्रसंग अथ जीवगति सिद्धान्त...416-439
(क) जीवनसार निधान...........................416
(ख) कल्याण सरूप निधान.....................427
(ग) बन्धनस्वरूप निधान.........................438
(घ) सत् विचार निधान............................449
(ड) धर्म परायण निधान...........................460

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विषय पृष्ठ

(च) सत्कर्म साधन निधान.................................471
(छ) सत्स्वरूप विश्वास निधान............................482
(ज) आनन्दस्वरूप साधन निधान........................494
(झ) आनन्दस्वरूप अनुभव निधान......................505
(ञ) आनन्द स्वरूप स्थिति.................................516
(ट) परमगति निधान.........................................527
(ठ) सत् शिक्षा संदेश.........................................539
(4) चौथा प्रसंग-सत्नाम प्रबोध मार्ग....................539-610
(क) सत-अनुराग सरोवर....................................557
(ख) प्रभु की महिमा...........................................566
(ग) आपामति हरण विवेक...................................576
(घ) शुद्ध चेतावनी...............................................584
(ङ) भक्ति मार्ग...................................................587
{4} चतुर्थ अंग-चिरंजीव गोष्ठ................................611-664
1. पहला विवेक अध्यात्म बोध..............................611-664
2. दूसरा विवेक - सतमार्ग की पहचान....................616-638
(क) सत्स्वरूप की महिमा.......................................619
(ख) सत्स्वरूप की उपासना.....................................631
(ग) सत्स्वरूप की प्राप्ति.......................................638-649
3. तीसरा विवेक-सत् साधु की महिमा.........................645
    (1) सत्संग की महिमा..........................................649        
4. चौथा विवेक-सतपुरुषों की समानता....................649-654
5. पांचवा विवेक-सत्नियम
       जीव उद्धारक..............................................654-657
6. छठा विवेक-पवित्र जीवन
{5} पंचम अंग-निखेत्र पर्वत गोष्ठ...........................665-756
1. पहली किरण-भक्ति तत्त्व प्रकाश.......................665-723
2. दूसरी किरण अन्तर गति              
         सार शब्द.................................................723-742
3. तीसरी किरण-वैराग्य अंग................................742-756
{6} षष्टम् अंग-समता सार-योग............................757-1104
1. पहला अध्याय-नाद विवेक...............................757-1077
(क) सत्गुरु प्रसादामृत.........................................757                                                                    
(ग) निष्काम कर्म साधना.....................................837
(घ) शून्य कर्म साधना..........................................876
(ड) नाद ध्यान....................................................916
(च) निर्वाण स्थिति..............................................955
(छ) सत्पुरुषों का आदर्श साधन..............................995
(ज) नाद साधन सार............................................1034
2. दूसरा अध्याय-विजय मंगल...............................1077-1098
3. तीसरा अध्याय-द्वादस मासी

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विवेक..........................................1098-1103

विषय पृष्ठ

4. चौथा अध्याय-आरती...................................1103-1104
5. पांचवां अध्याय-समता मंगल.............................1104
{7} सप्तम अंग-समता विज्ञान-योग.....................1105-1275
1. पहला रस-जीवन सार बोध............................1105-1166
2. दूसरा रस-ज्ञान नेष्ठा (निष्ठा)
                    प्रबोध........................................1166-1197
    आलखबानी....................................................1195
3. तीसरा रस-तिथि विवेक.....................................1197
(क) अमावस्या....................................................1197
(ख) एकम्..........................................................1198
(ग) द्वितीया........................................................1199
(घ) तृतीया..........................................................1199
(ड) चतुर्थी...........................................................1200
(च) पंचमी...........................................................1200
(छ) षष्ठी.............................................................1201
(ज) सप्तमी.........................................................1202
(झ) अष्टमी..........................................................1202
(ञ) नवमी...........................................................1203
(ट) दशमी............................................................1204
(ठ) एकादशी........................................................1204
(ड) द्वादशी...........................................................1205
(ढ) त्रयोदशी..........................................................1206
(ण) चतुर्दशी..........................................................1206
(त) पूर्णमाशी (पूर्णिम)..............................................1207
(थ) सिमरन दीपक...................................................1207
(द) सार उपदेश.......................................................1215
(ध) आनन्द सार......................................................1215
(1) वैद्यों के लक्षण..................................................1243
(न) गुरुस्वरूप लखना..............................................1247-48
(प) समता शान्ति....................................................1248-73
(फ) वाणी सार अमृत...............................................1273-75
     ग्रन्थ 'श्री समता प्रकाश'
समाप्ति.................................................................1275
चेतावनी.................................................................1276