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ग्रन्थ

श्री समता विलास

अनुभवी अगम-सद् वचन

सत्पुरुष पूज्य सद् गुरुदेव मंगतराम जी महाराज

संगत समतावाद (रजि०)

समता योगाश्रम
जगाधरी - 135003
हरियाणा

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प्रकाशक :

संगत समतावाद (रजि०) 
समता योगाश्रम 
जगाधरी-135003
प्रथम संस्करण  1949  1000
द्वितीय संस्करण  1956  1000
              से
नवम् संस्करण  2007 8600
दशम्  2012 1200
(सर्वाधिकार सुरक्षित हैं)

मुद्रक : 
सचदेवा प्रिटिंग प्रेस 
24, सेवा नगर मार्किट, 
नई दिल्ली-110003 
दूरभाष : 4623160 


प्राप्ति स्थान : समता योगाश्रम, छछरौली रोड, जगाधरी-135003

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समता

अपार शक्ति

महामन्त्र

ॐ ब्रह्म सत्यम्

निरंकार अजन्मा अद्वैत पुरखा

सर्व व्यापक कल्याण मूरत

परमेश्वराय नमस्तं

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ब्रह्म सत्यं 

सर्वाधार

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प्रस्तावना

विचारशील मनुष्य के अन्दर ऐसे प्रश्न पैदा होते हैं कि यह जीवन क्या है? यह संसार क्या है? यह दिन-रात की हलचल, दौड़-धूप, सुख-दुःख की झाँकियाँ, परिवर्तन और जन्म-मरण का चक्कर क्या मायने रखते हैं? मनुष्य की मानसिक इच्छा क्या है और इसकी तृप्ति किस प्रकार हो सकती है? ईश्वर किसको कहते हैं? उसका स्वरूप क्या है और उसके जानने के क्या साधन हैं, इत्यादि जीवन के इन प्रारम्भिक प्रश्नों पर समय-समय पर आने वाले सत्पुरुषों ने अपने-अपने ढंग से प्रकाश डाला है। इन सत्पुरुषों के पवित्र जीवन और अनमोल वचन कई सदियों तक करोड़ों मनुष्यों को ठण्डक पहुँचाते रहे हैं। सत्य एक है, भिन्न-भिन्न मत-मतान्तरों के प्रवर्तकों अवतारों और सत्पुरुषों ने उसी सत्य को ब्रह्म, निर्वाण, आसमानी बाप, अल्लाह, एक ओंकार और समता तत्त आदि शब्दों से पुकारा है, और उस सत् को अनुभव करने के लिए जीवन की पवित्रता पर ज़ोर दिया है लेकिन हर सुधारक सत्पुरुष ने सत् की ठीक व्याख्या के अतिरिक्त अपने समय की सामाजिक कुरीतियों और उस समय की बिगड़ी हुई अवस्था को सुधारने के लिए नाना प्रकार की युक्तियाँ बतलाई हैं। परन्तु ज्यों-ज्यों समय बीतता है अमली जीवन से हीन और स्वार्थी लोगों के हाथों सत् सिद्धान्त भी विकृत हो जाता है। जीवन के बाहरी या दिखावटी ढंग के आधार पर पक्षपात आ जाता है और सामाजिक ढाँचा कमजोर हो जाता है। स्वार्थ सिद्धि और अमली जीवन न होने के कारण सत् शिक्षा को गलत रूप दे दिया जाता है। धर्म तथा सत्पुरुषों के नाम की आड़ में राक्षस प्रवृत्ति लोग भोली-भाली जनता को धोखा देते हैं, और अपनी नीच वासनाओं को पूर्ण करने के

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लिए जनता का शोषण करते हैं। इससे बहुत अनर्थ, गिरावट और उपद्रव पैदा होते हैं और संसार को अति क्लेश मिलता है। जब-जब इस प्रकार की परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं और जनता को कोई रास्ता इससे बचने का दिखलाई नहीं पड़ता है तब तब सत्पुरुष इस संसार में आकर जनता को सन्मार्ग दिखलाते हैं। आप्त पुरुषों के वचन इसके प्रमाण हैं :

"जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ।” (योगेश्वर श्रीकृष्ण)

"जब-जब धर्म की हानि होने लगती है और भूमण्डल पर आसुरी प्रकृति एवं अभिमानी पुरुषों की बढ़ोत्तरी हो जाती है, तब-तब मैं मानुष चोले में आता हूँ और सज्जनों के कष्ट और संकटों को निवारण करता हूँ।" (भगवान श्रीराम)
"याही काज धरा हम जनम।समझ लेओ साधू सब मनमं।। 
धरम चलावन संत उबारन। दुष्ट  सबन  को मूल उपारन।।
(विचित्र नाटक : श्री गुरु गोविन्दसिंह जी महाराज)
"जब समता धर्म का प्रकाश लोप हो जाता है उस वक्त फिर सत्पुरुष आकर अमली ज़िन्दगी द्वारा प्रकाश दिखलाते हैं।" (सद्गुरुदेव महात्मा मंगत राम जी) 

वर्तमान काल के परम सत्पुरुष श्री सद्गुरुदेव मंगतराम जी महाराज ने भी इन्हीं परिस्थितियों में रावलपिण्डी जिला के गंगोठियाँ नामक गाँव में कसाल ब्राह्मण परिवार में 9 मघर संवत 1960 शुभ दिन मंगलवार, तदानुसार 24 नवम्बर, 1903 को मानव शरीर धारण किया।

इन सत्पुरुष ने जन्म-सिद्ध स्वरूप में ही जन्म लिया। बचपन से ही इन होनहार सत्पुरुष में पुरातन परम उज्जवल संस्कारों की झलक दीखती है। आम सन्तों में और सुधारक सन्तों में यह भिन्नता सदा से देखी गई है कि आम सन्त तो अपने कल्याण के हेतु ही उद्यम करके वह अवस्था प्राप्त कर लेते

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हैं, और उसी में सदैव लीन रहकर प्रारब्धवश शरीर छूटने के उपरान्त उस ब्रह्म तत्व में विलीन हो जाते हैं, परन्तु सुधारक  सन्त एक दूसरा मिशन, ध्येय एवं सिद्धान्त लेकर इस संसार में आते हैं। अपने आपको उस परम अवस्था के साथ तद्रूप किये हुए, संसार की दयनीय अवस्था के लिए दर्द और कल्याण के हेतु, पाखण्ड खण्डन की भावना को लेकर इस मानव जगत में प्रवेश करते हैं। पूज्य श्री सद्गुरुदेव मंगतराम जी महाराज भी इन्हीं सुधारक सन्तों  की परम्परा में से एक हैं। आपने भिन्न-भिन्न स्थानों में जाकर जैसी-जैसी जीवों की स्थिति देखी उसके अनुकूल ही मानव जीवन की हर बात ध्यान में रखते हुए अपने मुखारबिन्द से अनमोल वचन उच्चारण किये और सत् उपदेश दिये। इन सत् उपदेशों में जिज्ञासुओं के कल्याण के लिए बड़े सहज सरल साधन बतालाये गये हैं जिनको अपनाने से सर्व प्रकार के संशय दूर हो जाते हैं और सच्ची भक्ति एवं धर्म के शुद्ध रूप का ज्ञान प्राप्त होता है। श्री महाराज जी ने उस महान् सत्य को “समता तत्” के नाम से पुकारा है और वह जीवन शैली, जिसको धारण करके मनुष्य अपना तथा समाज, देश और मानव मात्र का कल्याण कर सकता है, "समतावाद' का नाम दिया है। समतावाद के पाँच मुख्य साधन हैं-सादगी, सत्य, सेवा, सत्संग और सत्-सिमरण। इन सुनहरी नियमों के तथा जीवन के दूसरे प्रारम्भिक प्रश्नों का इस पवित्र ग्रन्थ "श्री समता विलास” में बड़ी सरल भाषा में वर्णन किया गया है।

इस अनमोल ग्रन्थ में छ: अनुभव हैं। पहले अनुभव में “समता निधान" तथा "परम निधान" के प्रसंगों में समता के सार सिद्धान्त का वर्णन है। दूसरे अनुभव "समता धाम" में जीवन के बन्धन और क्लेश के मूल कारण और उनसे मुक्त होने का रास्ता बताया गया है। तीसरे अनुभव में तीव्र

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और साधारण बुद्धि वाले दोनों तरह के लोगों के लिए पथ-प्रदर्शन है। इसमें समता मार्ग के लिए 'जीवन प्रणाली', 'आस्तिकपन का असली स्वरूप', समता के पाँच सुनहरी नियमों अर्थात् सादगी, सत्य, सेवा, सत्संग और सत् सिमरण के असली स्वरूप की व्याख्या और उनको अपनाने के लाभ अत्यन्त सरल भाषा में वर्णन किये गये हैं। इस अनुभव के नौवें से तेरहवें उपदेशों में तीर्थ यात्रा, दान, मूर्ति-पूजा, देवी-देवताओं और ग्रहों की पूजा और भूत-प्रेत और पितर इत्यादि के सम्बन्ध में वर्तमान गहरे अज्ञान अन्धकार और संशय को दूर करने वाले और एक ईश्वर विश्वास को दृढ़ करने वाले अनमोल विचार दिये गये हैं। इसी के साथ चौदहवें उपदेश में धर्म उपदेशकों के लिए हिदायत दी गई है। चौथे अनुभव में धर्म के सही अर्थ, स्वरूप एवं लक्ष्य के सम्बन्ध में और "समताधर्म” तथा “समता मार्ग' पर प्रकाश डाला गया है। पाँचवें अनुभव में बुद्धि के अन्धकार और प्रकाश की अवस्थाओं का वर्णन है, तथा समता योग सिद्धि की चार सीढ़ियाँ सिमरन, भजन, ध्यान और समाधि से सम्बन्धित श्री सद्गुरुदेव जी ने राज योग के अन्तर्गत अपने आपका अनुभव साधकों के लिए प्रकट किया है। इसी के उप-भाग में "गुरुपद का सिद्धान्त", "समतावाद" तथा "उत्तरायण व दक्षिणायण मार्ग' सम्बन्धी बुद्धि को उज्जवल करने वाले विचार वर्णित है। छठे अनुभव में. 'वासना-विवेक', 'वासना-छेदन-विवेक' और 'वासना-अभाव-विवेक' के प्रसंगों में आवागवन के चक्र और वासना के फैलाव, वासना से मुक्ति होने के उपाय तथा निर्वाण पद का अनुपम वर्णन किया गया है। निर्मल जीवन और मलीन जीवन पर श्री सद्गुरुदेव महाराज जी ने जिज्ञासुओं के लिए अत्यन्त उच्च विचार अति सरल भाषा में वर्णन किये हैं। इसके अतिरिक्त "निहकर्म सिद्धि", "सत्संग", "जीवन नियम” एवं

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"जिज्ञासु का निर्मल प्रण” के विषयों पर "अनमोल सत् सन्देश अनुभवी वाक्” में वचन फरमाये हैं। अन्त में जो परिशिष्ट खण्ड जोड़ा गया है उसके दो उप-खण्ड हैं-प्रथम उप-खण्ड “समता जीवन विज्ञान' से सम्बन्धित है जिसमें जीव के शरीर धारण करने, जीवन यात्रा को सावधानी से व्यतीत करने और शरीर रूपी संसार पर विजय प्राप्त करने के अनेक पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। इसके अलावा ऐसे भी सत् उपदेशों को इस उप-खण्ड में समावेश किया गया है जो विश्व को सत् शान्ति की राह दिखलाते हैं जिससे आज के भोगवादी जीवन की समस्याओं का हल हो सकता और जिज्ञासुओं के लिए उससे छुटकारा पाने के सरल साधन ज्ञात हो सकते हैं। द्वितीय उप-खण्ड “समता ज्ञान मार्ग" में योग की उच्च स्थिति तथा उसकी प्राप्ति के सुगम साधनों का उल्लेख है एवं कई मिश्रित सत् उपदेशों का संग्रह है।

प्रस्तुत ग्रन्थ "श्री समता विलास” जिन अनमोल वचनों का संग्रह है वे सब महान तपीश्वर सतपुरुष श्री मंगतराम जी महाराज के मुखारबिन्द से निकले हुए हैं और श्री महाराज जी की आज्ञा प्राप्त होने पर ही आपके परम शिष्य भक्त श्री बनारसीदास जी ने जो कि हर समय आपकी सेवा में उपस्थित रहते थे लिख करके सत् के जिज्ञासुओं के लिये यह अनमोल रत्नों का भण्डार एकत्र किया है। सब पाठक सज्जनों को विचार-पूर्वक इन अनमोल रत्नों का स्वाध्याय कर जीवन को परम उच्च और निर्मल बनाना चाहिये।

संगत समतावाद (रजि०)

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समता

अपार-शक्ति

ब्रह्म सत्यं सर्वाधार

ग्रन्थ

श्री

समता विलास
श्री मुख-वाक् अमृत
पूज्यनीय श्री सद् गुरुदेव 
मंगतराम जी महाराज  
(पवित्र जन्म-भूमि शुभ स्थान गंगोठियाँ, ज़िला रावलपिण्डी, पाकिस्तान)

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सूची-पत्र समता विलास

क्रम संख्या विषय पृष्ठ

1. सूची-पत्र......................................................(xiii)
2. दीबाचा........................................................(xvi)

प्रथम अनुभव

3. समता निधान...................................................1
4. परम निधान...................................................23

दूसरा अनुभव-समता धाम

5. समता आनन्द की लोप अवस्था...........................27
6. ईश्वर भक्ति की प्राप्ति........................................43

तीसरा अनुभव-समता नीति

7. पहला उपदेश-समता ज्ञान का पूर्ण साधन................86 
8. दूसरा उपदेश-समता साधन सार...........................88
9. तीसरा उपदेश-आस्तिक व नास्तिकपन का विचार.....90
10. आत्मिक उन्नति धर्म का यथार्थ स्वरूप 
      आत्मिक उन्नति के मुख्य साधन
      चौथा उपदेश-पहला साधन-"सादगी"..................93
11. पाँचवाँ उपदेश-दूसरा साधन-"सत्य"...................103
12. छठा उपदेश-तीसरा साधन-''सेवा'.....................110
13. सातवाँ उपदेश-चौथा साधन-"सत्संग"................120
14. आठवाँ उपदेश-पाँचवाँ साधन-"सत् सिमरण'.......125
15. नवाँ उपदेश-तीर्थ यात्रा का सिद्धान्त..................132
16. दसवाँ उपदेश-दान का सिद्धान्त.......................135
17. ग्यारहवाँ उपदेश-मूर्ति पूजा का सिद्धान्त.............138

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18. बारहवाँ उपदेश-देवी-देवताओं और ग्रहों की पूजा का सिद्धान्त ..........................................................143
19. तेरहवाँ उपदेश-भूत-प्रेत व पितर का सिद्धान्त........153
20. चौदहवाँ उपदेश-धर्म उपदेशकों के वास्ते हिदायत...160

चौथा अनुभव-समता धार

पहला भाग :

21. समता धर्म..................................................169
22. समता मार्ग सन्देश.........................................193
23. बुद्धि की पूर्ण व अपूर्ण अवस्था का निर्णय............198
24. समदर्शी और समवृत्ति मार्ग का उपदेश................205

दूसरा भाग :

25. समता योग सिद्धि-पहला अंग-"सिमरण"..............210
26. दूसरा अंग-"भजन"........................................218
27. तीसरा अंग-"ध्यान"........................................220
28. चौथा अंग-"समाधि" ......................................223

तीसरा भाग :

29. गुरु पद का सिद्धान्त......................................237
30. समतावाद..................................................251
31. उत्तरायण व दक्षिणायण मार्ग के मुतल्लक विचार...252

चौथा भाग :

32. पवित्र जीवन................................................256

पाँचवाँ अनुभव-समता बोध

33. पहला निधान-वासना विवेक............................287
34. दूसरा निधान-वासना छेदन विवेक.....................299
35. तीसरा निधान-वासना अभाव विवेक .................321
36. चौथा निधान-शुद्ध आचरण विवेक.....................331
37. समता सत् नियम..........................................352

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छठा अनुभव

38. समता विवेक............................................359
39. सत्गुरु गुह्य उपदेश.....................................384
40. निर्मल जीवन कर्तव्य...................................386
41. आत्मिक व सामाजिक उन्नति के निर्मल नियम....389
42. शक्ति तत्व का निर्णय...................................398
43. समता परम स्वराज.....................................403
44. अनमोल सत् सन्देश अनुभवी वाक्..................408
      नित का जीवन, नित की शन्ति, नित का
      स्वराज केवल समता ही है।
45. निर्मल जीवन रक्षा......................................413
46. निहःकर्म सिद्धि यानी अहिंसावाद...................420
47. सत्संग निर्णय और सत् जीवन नियम...............428
48. जिज्ञासु का निर्मल प्रण................................433
      समता विलास समाप्ति...............................443

ग्रन्थ श्री समता विलास-परिशिष्ट खण्ड

समता जीवन विज्ञान

1. जीवन सफलता बोध....................................445
2. सार निर्णय जीवन........................................451
3. जीवन यात्रा...............................................454
4. जीवन सुधार..............................................457
5. कल्याणकारी निर्मल जीवन............................461
6. सत् जीवन स्थिति........................................463
7. जीवन सार सिद्धान्त.....................................465
8. सत् शिक्षा..................................................471
9. मार्ग धर्म में गुरु शिष्य सम्बन्ध..........................473

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10. स्त्री-पुरुष जीवन सम्बन्ध
      पतिव्रत धर्म............................................475
      पुरुष धर्म...............................................476
11. भूत-प्रेत पर विचार.....................................478
12. नवधा भक्ति का निर्णय................................480
13. समर्पण कर्म.............................................487
14. विश्व शान्ति सन्देश.....................................489
15. रामराज्य का स्वरूप...................................503

समता ज्ञान मार्ग

16. योग मार्ग बोध
    (क) भोगवाद स्थिति...................................506
    (ख) शुद्ध विवेक........................................516
    (ग) शुद्ध वैराग..........................................526
    (घ) शुद्ध निदिध्यास....................................548
17. सत् मार्ग स्थिति का निर्णय...........................587
18. परम कल्याण बोध.....................................590
19. सदाचार और नाम सिमरण का निर्णय..............603
20. ईश्वर प्रेम..................................................610
21. समवाद विज्ञान..........................................612
22. आत्म चिन्तन............................................625
23. सत् सरूप चिन्तवन की भावनाएँ
      सम्बन्ध कर्म योग या भक्ति योग....................632
      सम्बन्ध ज्ञान योग.....................................633
      खास चेतावनी.........................................635
24. आत्म सिद्धि विचार....................................635                                
25. श्री समता विलास अध्ययन सहायिका
       (क) समता विलास से प्रश्नों का समाधान.........639
        (ख) समता विलास से नवीन विषय क्रम..........656

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दीबाचा

यह समता विलास शास्त्र जीवन का सार सिद्धान्त श्री सत् गुरु महाराज जी ने सरल भाषा में भिन्न-भिन्न भावों सहित उच्चारण फरमाकर तमाम जिज्ञासु सज्जनों के वास्ते अति कृपालता की है और दास ने श्री सत् गुरु महाराज जी की आज्ञा और कृपा दृष्टि से तमाम वचनों को एकत्रित करके समता विलास पुस्तक में पूर्ण किया है। तमाम प्रेमी सज्जन जीवन उन्नति के हर एक भाव को विचार करके निध्यासन में अपने आपको दृढ़ करें जिससे मानुष जीवन सफल होवे।

समाप्तम्

लेखक,
श्री सत्गुरु चरण निवासी दास 
बनारसी दास 
समां महा सावन सम्मत 2005 बिक्रमी 
सिद्धखड मसूरी, जिला देहरादून (यू०पी०)