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समता

अध्यात्मिक पत्र

(प्रथम भाग)

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(परम योगीराज श्री सद्गुरु देव महात्मा मंगत राम जी द्वारा समय-समय पर प्रेमियों को लिखे गये पत्रों का संग्रह)
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प्रकाशक

संगत समतावाद (रजि०)

समता योगाश्रम, छछरौली रोड
जगाधरी जिला अम्बाला (हरयाणा)

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हज़ारों वर्ष की तपस्या इतना फल नहीं देती जितना दो घड़ी सत्संग से लाभ होता है । सत्संग में सहज ही सब भेद का विचार समझ आ जाता है । मूर्ख आदमी भी गुणवन्त हो जाता है, सत्संग ही तीर्थ है और ईश्वर प्राप्ति का कारण है ।

(श्री मंगतराम जी)

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प्रथम संस्करण 1976 …..1000
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संगत समतावाद (रजि०) समता योगाश्रम, छछरोली रोड, जगाधरी (हरयाणा) की ओर से राज प्रिन्टर्स राजा मण्डो आगरा-२ से मुद्रित ।

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प्रकाशक की ओर से

भारत की पवित्र भूमि में समय-समय पर संत महापुरुषों ने जन्म लेकर भूली भटकी जन्ता को सत मार्ग दर्शाया और उन्हें मोह माया को घोर जाल से बचा कर प्रभु परायणता का पाठ पढ़ाया। इस के अतिरिक्त उन्हें जीवन सम्बन्धी, समाज सम्बन्धी और संसार सम्बन्धी भिन्न-भिन्न विचारों द्वारा यथार्थ जीवन को अपनाने का आदेश दिया । जहाँ ऐसे सत पुरुषों ने स्थान-स्थान का भ्रमण करके सर्व साधारण को अपने अमृत व मनोहर तथा कल्याणकारी बचनों और वाणी द्वारा जीवन सुधार के साधन बतलाये वहाँ समय-समय पर सत की जिज्ञासा रखने वालों को पत्तों द्वारा भी गूह्य से गूह्य उपदेश दे कर उनके तप्त हृदयों को ठण्डा किया ।

परम संत शिरोमणि सतगुरु देव महात्मा मंगत राम जी महाराज भी ऐसे ही सतपुरुष हुये हैं जिन्हों ने इस पंच भौतिक शरीर में आकर ममता वाद की प्रचण्ड अग्नि में तप्त संसारियों को शान्ति प्राप्ति का आदेश दिया ।

आप के अनुभवी सत उपदेश इस समय दो महान ग्रन्थों "श्री समता प्रकाश" (वाणी) तथा "श्री समता विलास” (बचनों) में प्रकाशत हो चुके हैं। जिन का स्वाध्याय करके

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मानव मात्र आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। अब इस पुस्तक द्वारा सर्व साधारण के लाभ हेतू इस युग पुरुष के सत उपदेशों से भरपूर पत्नों का संग्रह प्रस्तुत किया जा रहा है ताकि मानव मात्र इनका विचार पूर्वक स्वाध्याय करके शाश्वत शान्ति का अनुभव कर सकें । यह वह पत्र हैं जो आप ने अपने जीवन काल में समय-समय पर अपने शिष्यों को उनके संशे निवृति, चेतावनी हेतु और समता की शिक्षा सुलभ रूप से पेश करने के लिये लिखा करते थे ।

संगत समतावाद

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विषय सूची

विषय पृष्ठ

1. जीवन सम्बन्धी पत्र..........................................1- 100

2. सत्संग सम्बन्धी पत्र....................................101 – 102

3. धर्म सम्बन्धी पत्र.........................................125 - 137 

4. योग सम्बन्धी पत्र ........................................141 - 206

5. आश्रम सम्बन्धी पत्र .....................................207 - 228

6. गुरु-शिष्य सम्बन्धी पत्र..................................229 - 246

7. बाल धर्म सम्बन्धी पत्र....................................247 - 248

8. चेतावनी......................................................249 - 250

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जीवन सम्बन्धी पत्र

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महा मन्त्र
ओ३म् ब्रह्म सत्यम् निरंकार अजनमा, अदद्वैत पुरख ।

सर्व व्यापक कल्यान मूरत परमेश्वराये नमस्तं ॥